किसी भी प्रकार के विवाद में शासन की किसी एजेंसी द्वारा उसकी जांच की जाती है। शासकीय जांच (डिपार्टमेंटल इंक्वायरी अथवा पुलिस इंक्वायरी) में दोषी पाए जाने पर आरोपी व्यक्ति के खिलाफ सजा का निर्धारण करने के लिए कोर्ट में चार्जशीट पेश की जाती है। फिर न्यायालय में दोनों पक्षों की सुनवाई होती है और अंत में निर्णय, लेकिन क्या चार्जशीट पेश होते ही कोई न्यायालय, आरोपी व्यक्ति को दोष मुक्त घोषित कर सकता है। आइए जानते हैं:-
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 227 की परिभाषा:-
सत्र न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा किसी मामले के अभिलेख एवं दस्तावेजों पर विचार कर लेने पर यह लगता है कि पीड़ित व्यक्ति द्वारा आरोपी के विरुद्ध कार्यवाही आगे करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है तब न्यायालय आरोपी को दोषमुक्त कर देगा एवं दोषमुक्ति के सभी कारणों को लेखबद्ध करेगा।
उदाहरणानुसार वाद:- रामदेव बनाम राज्यस्थान राज्य-
उक्त मामले में न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया कि धारा 227 को ध्यान में रखते हुए किसी आरोपी को दोषमुक्त किये जाने का आदेश पारित करने से पहले न्यायालय को मामले के अभिलेखों एवं दस्तावेजो पर विचार कर लेना चाहिए।
यदि इस प्रक्रम पर न्यायिक विवेक से काम नहीं लिया जाता तो आरोपी को विचारण की यातना झेलनी पड़ेगी इसलिए आरोप तैयार करने वाले न्यायालय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 227 के नियमोँ का अनुसरण करना चाहिए।
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com