पुलिस FIR दर्ज करने के बाद मामले की इन्वेस्टिगेशन करती है और आरोपी के खिलाफ यदि पुख्ता गवाह और प्रमाण मिलते हैं तो कोर्ट के सामने सजा के निर्धारण के लिए केस डायरी प्रस्तुत की जाती है। कोर्ट में न्यायाधीश, आरोपी से पूछता है कि उसने अपराध किया है या नहीं। यदि आरोपी, इंकार करता है तो विचारण की प्रक्रिया शुरू होती है लेकिन यदि आरोपी, अपराध करना स्वीकार कर ले तो उसके खिलाफ सजा का निर्धारण अनिवार्य हो जाता है। आइए जानते हैं:-
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 229 की परिभाषा:-
यदि कोई व्यक्ति, अभियोजन द्वारा लगाए गए आरोपों को न्यायालय में स्वीकार कर लेता है तब मजिस्ट्रेट अभिवचन को लेखबद्ध करेगा। एवं उसके पश्चात मजिस्ट्रेट का विवेकाधिकार हैं की वह दंड का निर्धारण करें अथवा विचारण की प्रक्रिया शुरू करे।
मजिस्ट्रेट स्वीकार दोषी के अपराध का विचारण कब करवाएगा:-
वह अपराध को स्वीकार करने वाले व्यक्ति के अपराध का विचारण भी करवा सकता है अगर उसे लगता है कि स्वीकृति के अलावा अन्य साक्ष्य आरोपी के खिलाफ नहीं है तब।
नोट:- आरोपी व्यक्ति को स्वयं के द्वारा आरोप स्वीकार करना चाहिए एवं एक बार आरोप स्वीकार अर्थात अभिवचन देने के बाद अपराधी उच्च न्यायालय में स्वीकार आरोपों की सत्यता नहीं करवा सकता है। (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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