भारत के शास्त्रों में प्रकृति के सभी रहस्यों के उत्तर मिल जाते हैं। भारत में हर उस चीज के लिए उत्सव का विधान किया गया है, जो मनुष्य के लिए आवश्यक है। यहां तक की प्रकृति के लिए बसंत पंचमी भी भारत में ही मनाई जाती है। अपन सब जानते हैं कि चंद्रमा, पृथ्वी पर मनुष्य के लिए कितना अनिवार्य है। सवाल यह है कि फिर हम चंद्रमा की जयंती क्यों नहीं मनाते, जबकि धरती को मां और चंद्रमा को मामा कहते हैं। आइए पता लगाते हैं:-
पृथ्वी, प्रकृति और मनुष्य के जीवन में चंद्रमा का महत्व
नासा के वैज्ञानिकों ने कंफर्म कर दिया है कि चंद्रमा की उत्पत्ति पृथ्वी से ही हुई है। अरबों साल पहले अंतरिक्ष में कोई बड़ा घटनाक्रम हुआ और उससे चंद्रमा का जन्म हुआ। नासा के वैज्ञानिकों की थ्योरी सही है या नहीं, अपन नहीं जानते परंतु इतना जानते हैं कि यदि चंद्रमा ना हो तो पृथ्वी पर जीवन नहीं हो सकता। चंद्रमा के कारण ही प्रकृति में हलचल होती है। समुद्र में लहरें उठती हैं। धरती पर ऑक्सीजन उपलब्ध होती है।
चंद्रमा की जन्म तिथि
वैज्ञानिक चंद्रमा के जन्म की कोई तारीख नहीं बता सकते क्योंकि तब कोई कैलेंडर अस्तित्व में था ही नहीं लेकिन भारत के शास्त्रों में इसका उल्लेख मिलता है। मत्स्य एवं अग्नि पुराण, पद्म पुराण और स्कंद पुराण में चंद्रमा की जन्म की कथाओं का उल्लेख है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि चंद्रमा की जन्म तिथि, फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि है।
यह, वह दिन है जब भगवान शिव ने सृष्टि की रचना में अपना योगदान दिया। इसी दिन भगवान शिव ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया। इसीलिए फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। जबकि शेष सभी को मात्र शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
बाद में भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह भी इसी तिथि पर हुआ, और उसके बाद से महाशिवरात्रि को भगवान शिव एवं माता पार्वती की वैवाहिक वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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