ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर की पहचान भले ही आज की तारीख में सिंधिया राजवंश से होती हो परंतु एक वक्त ऐसा भी था जब मिट्टी के खिलौनों के कारण ग्वालियर की ख्याति दुनियाभर में प्रसिद्ध थी। क्या मुगल और क्या अंग्रेज, सभी ग्वालियर के कलाकारों द्वारा बनाए गए खिलौनों से मोहित हो जाते थे।
ग्वालियर शहर में जिसे महाराज बाड़ा कहा जाता है, ठीक इसी स्थान पर मिट्टी के खिलौनों का बाजार लगता था। यहां केवल बच्चों के खेलने के लिए हाथी, घोड़े, सिपाही और गुल्लक नहीं बनाए जाते थे बल्कि महालक्ष्मी का हाथी, हरदौल का धोड़ा, गणगौर, विवाह संस्कार के समय उपयोग किए जाने वाले के कलश, टेसू, मायके से ससुराल जाते समय दुल्हन को दी जाने वाली विशेष कलात्मक मटकी आदि बनाए जाते थे। ग्वालियर के कुम्हारों की कला का लोहा केवल ग्वालियर अंचल में ही नहीं बल्कि झांसी के आगे उत्तर प्रदेश में और राजस्थान में जयपुर तक संस्कृति में शामिल हो गई थी।
कोई भी त्यौहार हो, यदि ग्वालियर में मिट्टी से निर्मित विशेष कलात्मक मूर्तियां उसमें शामिल नहीं है तो माना जाता था कि देवता प्रसन्न नहीं होंगे। सबसे खास बात यह है कि ग्वालियर की मिट्टी और उससे बनी मूर्तियों को सर्वाधिक शुद्ध माना जाता था। बैलगाड़ी के जमाने में मिट्टी की मूर्तियों का निर्यात होता था। ग्वालियर की महत्वपूर्ण खबरों के लिए कृपया GWALIOR NEWS पर क्लिक करें.