JABALPUR में साक्षात गौरीशंकर विराजमान हेतु ऋषि सुवर्ण ने जल समाधि ले ली थी- HISTORY and STORY

Bhopal Samachar
पृथ्वी पर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं। कहते हैं कि सभी स्वयंभू एवं जागृत शिवलिंग है लेकिन मध्यप्रदेश के जबलपुर में एक स्थान ऐसा है जहां साक्षात शिव विराजमान हैं। यह कथा इतिहास में दर्ज नहीं है परंतु सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती है और नर्मदा नदी की जलधारा एवं प्राकृतिक संरचना इस कथा का समर्थन करते हैं। 

गौरीशंकर चौसठ योगिनी मंदिर जबलपुर की कथा 

प्राचीन काल में भगवान शिव एवं माता पार्वती पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए भेड़ाघाट के ऊंचाई वाले स्थान पर पहुंचे। यहां पर ऋषि सुवर्ण तपस्या कर रहे थे। भगवान शिव एवं माता पार्वती के चरण पड़ते ही, ऋषि सुवर्ण उन्हें पहचान गए। उन्होंने गौरी शंकर को प्रणाम किया और निवेदन किया कि नर्मदा पूजन का समय हो गया है। जब तक वह वापस नहीं लौटे तब तक कृपया यहीं पर विराजमान रहे। भगवान शिव एवं माता पार्वती ऋषि सुवर्ण के विनम्र आग्रह को ठुकरा नहीं पाए और वहीं पर विराजमान हो गए। 

ऋषि सुवर्ण जब नर्मदा नदी में स्नान कर रहे थे तभी उनके मन में विचार आया कि यदि भगवान शिव एवं माता पार्वती सदा के लिए यही विराजमान हो जाए तो मानव जाति का कल्याण होगा। इस विचार के साथ ही ऋषि सुवर्ण ने नर्मदा नदी में जल समाधि ले ली। गौरीशंकर उनकी प्रतीक्षा में आज भी वहीं पर विराजमान है। 

भेड़ाघाट में संगमरमर के पहाड़ और नर्मदा नदी की धारा परिवर्तन की कहानी

भगवान शिव जानते थे कि सुवर्ण ऋषि मानव जाति के कल्याण के लिए उन्हें सदैव यहां विराजमान रखना चाहते हैं, लेकिन उनके विराजमान स्थान और आम श्रद्धालुओं के बीच से नर्मदा का तीव्र प्रवाह बह रहा था जिसे पार करना आज भी मनुष्यों के लिए लगभग असंभव है। भगवान शिव ने माता नर्मदा से प्रार्थना की कि वह अपनी धारा परिवर्तित कर लें। माता नर्मदा ने बताया कि भेड़ाघाट की चट्टाने बहुत मजबूत है। उनके रहते प्रवाह का परिवर्तन करना संभव नहीं है। 

तब भगवान शिव ने भेड़ाघाट के सभी पहाड़ों को दुनिया के सबसे नरम पत्थर (संगमरमर) में बदल दिया और नर्मदा नदी गौरी शंकर विराजमान के दाएं को छोड़कर बाएं से प्रवाहित होने लगी। नर्मदा का पुराना मार्ग अब भी बैनगंगा बूढ़ी नर्मदा के नाम से जाना जाता है। कल्चुरी शासक युवराजदेव ने त्रिभुजी कोण संरचना पर आधारित इस मंदिर का निर्माण कराया है। वर्तमान में भारत सरकार का पुरातत्व विभाग इस मंदिर की देख-रेख करता है। जिसे स्थानीय लोग गौरीशंकर चौसठयोगिनी मंदिर के नाम से पुकारते हैं। जबलपुर की महत्वपूर्ण खबरों के लिए कृपया JABALPUR NEWS पर क्लिक करें.

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