जबलपुर। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने श्रम न्यायालय के प्रति गंभीर टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी की याचिका को खारिज करके श्रम न्यायालय ने न्याय का गर्भपात किया है। हाईकोर्ट ने श्रम न्यायालय को निर्देशित किया है कि वह मामले की सुनवाई करें और न्याय संगत फैसला करें।
याचिकाकर्ता राजधानी भोपाल निवासी कन्छेदी लाल की ओर से अधिवक्ता रजनीश गुप्ता ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता शासकीय विभाग में भृत्य के पद पर पदस्थ था। सन 1979 में उसे बर्खास्त कर दिया गया था क्योंकि उसके खिलाफ न्यायालय में परिवाद दाखिल हो गया था। सन 1990 में भोपाल कोर्ट ने उसे दोष मुक्त घोषित कर दिया।
अपनी नौकरी वापस पाने के लिए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने श्रम न्यायालय में याचिका दाखिल की परंतु श्रम न्यायालय ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया। न्याय की उम्मीद में उसने स्टेट इंडस्ट्रियल कोर्ट में अपील की परंतु राज्य औद्योगिक न्यायालय ने यह कहते हुए उसकी अपील को खारिज कर दिया कि उसने अपील करने में देरी कर दी है।
हाईकोर्ट ने कहा कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की याचिका पर देरी को नजरअंदाज करते हुए मामले की मेरिट पर सुनवाई की जानी चाहिए थी। ऐसा ना करके न्याय का गर्भपात किया गया है। हाईकोर्ट ने निर्देशित किया कि इस मामले को मेरिट पर लेकर सुनवाई की जाए एवं न्याय संगत फैसला किया जाए। जबलपुर की महत्वपूर्ण खबरों के लिए कृपया JABALPUR NEWS पर क्लिक करें.