वाजिबुल अर्ज (वाजिब उल अर्ज) शब्द एक पर्शियन भाषा का शब्द समूह हैं। इस शब्द का उचित अर्थ होता है रूढ़ि पत्रक अर्थात परंपरागत दस्तावेज। अर्थात गाँव की भूमि में निवासियों के भूमि और जल में कई परंपरागत अधिकार होते हैं। इन परंपरागत अधिकारों के दस्तवेज को तैयार किया जाना ही वाजिबुल अर्ज अभिलेख कहलाता है। जानते हैं संहिता के अनुसार यह दस्तावेज कैसे और किसके द्वारा तैयार किया जाता है।
मध्यप्रदेश भू राजस्व संहिता, 1959 की धारा 242 की परिभाषा:-
वह भूमि जिस पर न तो राज्य शासन का अधिकार हैं न ही कोई प्राधिकारी के नियंत्रण में वह भूमि परंपरागत, सुखाचार भूमि गाँव के निवासियों की आधिकारिक होगी। जैसे सिंचाई के अधिकार, मछली पकड़ने के अधिकार, परंपरागत मार्ग अधिकार, नालियों का अधिकार एवं सुखाचार (कब्रिस्तान, श्मशान, पड़ाव, खलिहान, बाजार, चारवाई का स्थान आदि) आदि निवासियों के परंपरागत भूमि अधिकार होते हैं।
★ उपखण्ड अधिकारी (SDO) ऐसी भूमि का प्रकाशन करेगा जो गांव के हैं एवं उसका एक दस्तावेज बनाएगा। जिसे वह वाजिबुल अर्ज अभिलेख में अभिलिखित करेगा।
★ अगर किसी को ऐसी परंपरागत अधिकारित भूमि में आपत्ति है तो वह एक वर्ष के भीतर सिविल न्यायालय में वाद दायर कर सकता है।
SDO कब वाजिबुल अर्ज पत्रक में संशोधन कर सकता हैं जानिए:-*
कोई भी परंपरागत रूढ़ि अधिकार वाली भूमि में उपखण्ड अधिकारी धारा 242(5) के अंतर्गत निम्न आधार पर संशोधन करेगा-
1. हित धारी समस्त व्यक्ति परिवर्तन चाहते हैं तब।
2. सिविल न्यायालय के आदेश, डिक्री या निर्णय पर।
3. अपील, पुनः निरीक्षण, पुनः अविलोकन में ऐसी डिक्री परिवर्तन कर दी गई हो तब।
नोट:- कोई भी उपखण्ड अधिकारी कोई नई पीढ़ी की परंपरा अनुसार किसी भूमि को वाजिबुल अर्ज घोषित नहीं करेगा केवल प्रचलित रूढ़ियों को ही निर्धारित करेगा। (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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