मध्यप्रदेश में आखिरकार ओबीसी को बहुप्रतीक्षित 27% आरक्षण की घोषणा हो ही गयी। किंतु यह आरक्षण सिर्फ सीधी भर्ती सरकारी नौकरियों तक ही सीमित रहेगा। हालांकि आरक्षण समर्थक आरक्षण का दायरा बढ़ाकर प्राइवेट तक में करने की वकालत करते रहे हैं।
आजादी के बाद जब संविधान लिखा जा रहा था तब बाबा साहेब की दूरदर्शिता ही थी कि उन्होंने ऐसे तबकों को लाभ देने के बारे में सोचा जिसे उच्च वर्ण के लोग अपने गांवों तक में रहने नहीं देते थे। उन्होंने इसके लिए सर्वमान्य आधार "सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन" को चुना जो संविधान में आज भी निहित है। किंतु तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी उच्च वर्ण के लोग एक विशेष तबके को अपने पास बैठान में हिचकेंगे।
इसका सबसे बड़ा कारण यह हो सकता है कि बाबा साहेब के बाद आरक्षण के लाभार्थी तबके के बारे में ना ही किसी नेता ने सोचा और ना ही लाभ पाकर उच्च वर्ग अर्थात अधिकारी बने व्यक्तियों ने उनकी स्थिति पर विचार किया। अन्यथा विधायिका और न्यायपालिका में भी आज नियम से आरक्षण लागू हो चुका होता। इसके साथ ही प्राइवेट कंपनियां जिसको जनता के टैक्स से लाभ मिलता है, में भी कानून बनाने वालों ने आरक्षण लागू करवा दिया होता।
आज भी मंत्रियों के निकट स्टॉफ में कितने ही ओबीसी, एससी, एसटी के लोग हैं, इसकी भी समीक्षा आवश्यक है। अतः जब तक उपरोक्त वर्णित वर्ण को सभी स्थानों पर आरक्षण नहीं मिल जाता तब तक वे शैक्षणिक रुप से भले ही सुधर जायें किंतु सामाजिक रुप से सदैव पिछड़े ही रहेंगे। मध्य प्रदेश की महत्वपूर्ण खबरों के लिए कृपया mp news पर क्लिक करें.