मध्य प्रदेश प्राथमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा का एक बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक है "बालकों का मानसिक स्वास्थ्य एवं बालकों की व्यवहार संबंधी समस्याएं"। जिसमें से कि बालकों का मानसिक स्वास्थ्य हम पहले ही डिस्कस कर चुके हैं। अब आज हम बालकों की व्यवहार संबंधी समस्याओं के बारे में चर्चा करेंगे।
आपने अक्सर महसूस किया होगा कि हम अलग-अलग परिस्थितियों में हमारा व्यवहार अलग प्रकार से होता है। घर में किसी व्यक्ति का व्यवहार अलग होता है, जबकि ऑफिस में अलग, अपने दोस्तों के बीच अलग, अपने से बड़ों के बीच अलग, अपने से छोटों के बीच अलग व्यवहार होता है। परंतु आपने यह भी देखा हुआ कि कई लोगों को अपने व्यवहार के बीच में समायोजन करने में कठिनाई आती है।
इसी प्रकार बच्चों में भी बचपन से ही व्यवहार संबंधी समस्याएं दिखाई देती हैं। जिनका समय पर निदान होने से इन्हें काफी हद तक बदला जा सकता है। इस प्रकार की समस्याओं का पता लगाने के लिए योग्य शिक्षक का होना बहुत आवश्यक है। इसीलिए शिक्षक पात्रता परीक्षा का आयोजन किया जाता है, जिससे कि योग्य शिक्षक प्राप्त हो सकें।
बालकों के व्यवहार से संबंधित दृष्टिकोण
1. भारतीय दृष्टिकोण- भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार प्रत्येक मनुष्य में देवासुर संग्राम चलता रहता है। यानी एक ओर दैवी प्रवृत्तियां (Devine Pravratti) और दूसरी ओर आसुरी प्रवृत्तियां (Demonic Pravratti)। किसी भी व्यक्ति का व्यवहार तभी दोषपूर्ण होता है जबकि उसमें आसुरी प्रवृत्तियों की प्रधानता हो। इसी कारण गर्भावस्था से ही इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि बच्चे के ऊपर देवी प्रवृत्तियों का अधिक से अधिक प्रभाव पड़े, ना की आसुरी प्रवृत्तियों का।
2. पाश्चात्य दृष्टिकोण- पाश्चात्य दृष्टिकोण के अनुसार व्यक्ति के दोषपूर्ण व्यवहार के पीछे सैमेटिक मजहब यानी शैतान का वास होता है। बच्चे में इस शैतान को भगाने के लिए उसे कड़ा शारीरिक दंड दिया जाता है मुर्गा बनाया जाता है।
3. अनुवांशिक दृष्टिकोण- कई मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि समस्यात्मक व्यवहार के पीछे बच्चे की वंश -परंपरा होती है। इसलिए ऐसे बच्चों के प्रति सहानुभूति पूर्ण दृष्टि को अपनाना चाहिए। जबकि कुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अनुवांशिकी दोषपूर्ण होने के बाद भी हम बच्चे के वातावरण को बदलकर, उसकी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।
4. व्यवहारवादी दृष्टिकोण- व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक जिसे वाटसन का मानना है कि बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्या का कारण दोषपूर्ण वातावरण है जिसमें वह रहता है। ये अनुवांशिकता को महत्व नहीं देते। जबकि सिगमंड फ्राइड के अनुसार आंतरिक और बाहरी कारकों के अंतर्द्वंद के कारण ही समस्याएं उत्पन्न होती हैं और भावना ग्रंथि का निर्माण हो जाता है, जो कि अचेतन मन में दबी पड़ी रहती है परंतु किसी कारण से वह व्यवहार में प्रकट हो जाती है, जिसे मानसिक अस्वस्थता कह दिया जाता है।
5. नव विश्लेषण वादी दृष्टिकोण- नवविश्लेषण वादी मनोवैज्ञानिकों जैसे हॉर्नी, फ्रॉम आदि का कहना है कि दोषपूर्ण आदतों के निर्माण के कारण और परस्पर संबंधों के अभाव के कारण व्यवहारात्मक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।
बालकों की व्यवहार गत समस्याओं को प्रभावित करने वाले कारक / factors affecting the behavioral problems of children's
वे सभी कारक जो वृद्धि और विकास को प्रभावित करते हैं, वह बालक के व्यवहार को भी कहीं ना कहीं प्रभावित करते हैं, परंतु मुख्य रूप से बच्चों की आयु, बच्चों की बुद्धि, सामाजिक तत्व, व्यक्तिगत तत्व, बाल विकास की अवस्थाएं मुख्य रूप से प्रभावित करती हैं। बाल विकास की अवस्थाओं के अनुसार हम बच्चे से उसकी उम्र के अनुसार व्यवहार अपेक्षित करते हैं, परंतु जब वह अपनी अवस्था या उम्र के अनूरूप व्यवहार नहीं कर पाता है, तो समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।
इसी कारण बालक की व्यवहार संबंधी समस्याओं के निराकरण के लिए शिक्षकों, अभिभावकों को बच्चों की अवस्था के अनुसार उनका विकास किस प्रकार से होना चाहिए और उन्हें किस तरीके का व्यवहार करना चाहिए इसकी जानकारी होनी चाहिए। मध्य प्रदेश प्राथमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा के इंपोर्टेंट नोट्स के लिए कृपया mp tet varg 3 notes in hindi पर क्लिक करें.