एमपी टेट वर्ग 3 में "अधिगम और शिक्षण शास्त्र "से संबंधित 10 अंकों के प्रश्न पूछे जाते हैं इस टॉपिक में टॉपिक में 10 सब टॉपिक्स हैं, जिनसे संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। इसके अंतर्गत "बच्चे कैसे सोचते और सीखते हैं, बच्चे शाला प्रदर्शन में सफलता प्राप्त करने में क्यों और कैसे असफल होते हैं।
शिक्षण और अधिगम की मूलभूत प्रक्रियाएं, बच्चों के अधिगम की रणनीतियां, अधिगम एवं सामाजिक प्रक्रिया बच्चों के रूप में अधिगम का सामाजिक संदर्भ, समस्या समाधान कर्ता और वैज्ञानिक अन्वेषक के रूप में बच्चा, बच्चों में अधिगम की वैकल्पिक धारणाएं, बच्चों की त्रुटियों को अधिगम प्रक्रिया में सार्थक कड़ी के रूप में समझना, अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक: अवधान और रुचि, संज्ञान और संवेग, अभिप्रेरणा और अधिगम, अधिगम में योगदान देने वाले कारक- व्यक्तिगत और पर्यावरणीय ,निर्देशन एवं अभिक्षमता और उसका मापन ,स्मृति और विस्मृति" हैं।
अधिगम और शिक्षण शास्त्र / Learning and Pedagogy
अधिगम का सामान्य अर्थ है- सीखना (Learning) जबकि शिक्षाशास्त्र, में शिक्षण कार्य की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है की ,बच्चों को कैसे सिखाया जाए।
अधिगम या सीखना एक एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जो बच्चे अपने आप ही करते हैं। अधिगम- शिक्षण प्रक्रिया के चार मुख्य घटक- शिक्षार्थी ,शिक्षक, पाठ्य सामग्री और पाठ्य विधि होते हैं। पाठ्य सामग्री और पाठ्य विधि, शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच मध्यस्थ का काम करते हैं। जिससे शिक्षार्थी एवं शिक्षक दोनों ही प्रभावित होते हैं और एक दूसरे को प्रभावित भी करते हैं।
बच्चे कैसे सोचते और सीखते हैं, बच्चे शाला प्रदर्शन में सफलता प्राप्त करने में कैसे और क्यों असफल हो जाते हैं?
बच्चे अपनी रूचि और जिज्ञासा के आधार पर सोचते हैं और सीखते हैं। बच्चे जन्म के तुरंत बाद ही सीखना शुरू कर देते हैं, बच्चे अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुसार वस्तुओं को देखकर, छूकर, उनके बारे में अनुभव प्राप्त करते हैं जो की एक सहज और स्वाभाविक प्रक्रिया है। बच्चे अपनी रूचि और जिज्ञासा के आधार पर सोचते हैं और सीखते हैं। इसी कारण जिस बच्चे की जिस चीज या विषय में ज्यादा रूचि होती है वह उसे बहुत जल्दी सीख जाता है, जबकि जिसमें उसकी रूचि नहीं होती उसे सीखने में उसे अधिक समय लग जाता है। इसीलिए पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या बच्चों की रुचि के अनुसार होना आवश्यक है।
बच्चे शाला प्रदर्शन में सफलता प्राप्त करने में कैसे और क्यों असफल हो जाते हैं?
स्कूल का कार्यक्रम साधारणतया बच्चों की क्षमता और योग्यता के अनुसार निर्धारित किया जाता है, इस उम्र में बच्चों की वास्तविक आयु के साथ-साथ उनकी मानसिक आयु भी बढ़ती है। बड़े होने के साथ-साथ उनकी कार्यकुशलता तथा बुद्धि में भी वृद्धि होती है, स्कूल के कार्यक्रमों की जटिलता में भी वृद्धि होती है, जो कार्य दूसरी कक्षा के बच्चों के लिए कठिन होते हैं, वही कार्य पांचवी कक्षा के बच्चे बड़ी आसानी से कर लेते हैं परंतु बुद्धि में वृद्धि के साथ-साथ रुचियों में भी परिवर्तन होता है, छोटे बच्चे अपने आसपास के परिवेश में रुचि रखते हैं जबकि बड़े होने पर उनकी जिज्ञासा बढ़ती जाती है। अब बच्चे को अपने आसपास के परिवेश के अलावा देश और विदेश के संबंध जानने की भी जिज्ञासा होने लगती है। ऐसे में यदि शिक्षक अध्ययन को रुचिकर और रोमांचक बनाए रखें तो बच्चे भी सामान्य ढंग से सीख सकते हैं।
कई बार माता-पिता को मोहवश अपने बच्चों को सर्वोत्तम मान लेते हैं और उनकी गलतियों को देखते ही नहीं है और उनसे ऊंची- ऊंची आशाएं बांध लेते हैं, इसके कारण बच्चे पढ़ाई में पिछड़ने लगते हैं।
कई बार बच्चे शारीरिक दोष के कारण भी पिछड़ जाते हैं। जबकि कभी-कभी तीव्र बुद्धि के बालक भी पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं। उनकी जिज्ञासा को तृप्त करने की बजाय उसे कुचल दिया जाता है, विद्यालय में मिलने वाली सफलता प्रायः घरेलू वातावरण पर भी निर्भर करती है, जिस प्रकार सहानुभूति स्फूर्तिवान बनाती है, उसी प्रकार खिन्नता उत्साहहीन बनाती है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि विद्याअध्ययन के लिए सिर्फ मानसिक तीव्रता ही पर्याप्त नहीं होती, बल्कि बच्चे की रूचि, सहानुभूति, स्कूल का वातावरण, शिक्षक तथा माता-पिता का व्यवहार, सभी कुछ प्रभावित करता है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए एवं यदि बच्चे को केंद्र में रखकर शिक्षा प्रदान की जाए तो असफलता की संभावना कम होगी।
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