जबलपुर। आरक्षण की राजनीति के कारण मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित राज्य सेवा परीक्षा 2019 खतरे में पड़ गई है। एमपीपीएससी ने सामान्य प्रशासन विभाग के निर्देशानुसार रिजल्ट घोषित कर दिए, इसी के साथ हाईकोर्ट में चुनौती प्रस्तुत कर दी गई। हाईकोर्ट ने 2 दिन के भीतर सरकार से जवाब मांगा है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि मुख्य परीक्षा 31 दिसंबर 2021 के परिणामों में रिपील नियम लागू किए गए हैं। इस सिलसिले में 45 याचिकाएं पूर्व से लंबित हैं। हाई कोर्ट में नियमों की संवैधानिकता व प्रारंभिक परीक्षा परिणाम 2019 की वैधता को चुनौती दी गई है। उक्त याचिकाओं के लंबित रहने के दौरान मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग ने घोषित कर दिए। पीएससी ने मुख्य परीक्षा के परिणाम संशोधित नियमों को दरकिनार करके जारी किए।
लिहाजा, मुख्य परीक्षा 2019 के परिणाम, पीएससी 2019 की प्रारम्भिक परीक्षा परिणाम व मुख्य परीक्षा परिणाम निरस्त किये जाने चाहिए। बहस के दौरान तर्क दिया गया यह समान्य नियम है की असंवैधानिक नियमों के सम्बंध में उपधारण की जाएगी कि उक्त नियम कभी अस्तित्व में थे ही नहीं फिर भी पीएससी द्वारा लागू किए गए।
उक्त असंवैधानिक नियमों के तहत कुल आरक्षण 113 प्रतिशत था। आरक्षित वर्ग के प्रतिभावन छात्रों को अनारक्षित-ओपन सीट पर माइग्रेट करने से रोकते थे, जिन्हें हाई कोर्ट के निर्देश के बाद 20 दिसंबर 2021 को राज्य शासन को निरस्त करना पड़ा। 4 फरवरी 2022 को मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा 2019 के प्रारंभिक परीक्षा परिणाम व मुख्य परीक्षा परिणामों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका की मुख्य न्यायमूर्ति रवि मलिमठ व न्यायाधीश पुरुषेन्द्र कौरव की युगलपीठ में सुनवाई हुई।
कोर्ट ने राज्य शासन व मध्य प्रदेश राज्य लोकसेवा आयोग से दो दिन के अंदर जबाब तलब किया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कृष्ण तन्खा, रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक शाह, राम भजन लोधी ने पैरवी की। कोर्ट द्वारा प्रकरण की अगली सुनवाई आठ फरवरी, 2022 को नियत की है। उच्च शिक्षा, सरकारी और प्राइवेट नौकरी एवं करियर से जुड़ी खबरों और अपडेट के लिए कृपया MP Career News पर क्लिक करें.