पुलिस (द्रोह-उद्दीपन) अधिनियम ब्रटिश सरकार द्वारा 5 अक्टूबर 1922 को लागू किया गया था। वर्तमान में यह अधिनियम सम्पूर्ण भारत में प्रभावी है। इस एक्ट का उद्देश्य यह है की कोई भी व्यक्ति किसी पुलिस बल के सदस्यों को उनके कर्तव्य पालन से दूर न करे एवं पुलिस बल को भ्रमित करने से रोकना है,जानते हैं क्या है अधिनियम के द्रोह-उद्दीपन का अपराध।
पुलिस (द्रोह-उद्दीपन) अधिनियम,1922 की धारा 3 की परिभाषा:-
• कोई भी व्यक्ति भारत के किसी भी राज्य क्षेत्र के पुलिस बल को उकसाएगा, क्रोध उत्पन्न करेगा या कोशिश करेगा।
• कोई व्यक्ति किसी पुलिस बल को अपने सदस्यों के प्रति भड़कएगा या उनको कर्तव्यों से या अनुशासन से दूर करेगा या ऐसा करने का प्रयत्न करेगा।
• कोई व्यक्ति पुलिस बल में भाषण देकर असंतोष फैलाएगा या सेवा रोकने के लिए त्याग पत्र देने के लिए ब्रेनवाश करने की कोशिश करेगा, तब ऐसा करने वाला व्यक्ति उपर्युक्त धारा के अंर्तगत दोषी होगा।
दण्ड का प्रावधान:- यह संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध हैं, इनकी सुनवाई का अधिकार प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को हैं। सजा- उक्त धारा के अंतर्गत दोषी को अधिकतम तीन वर्ष की कारावास एवं जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।
पुलिस बल को उकसाना कब अपराध नहीं होगा:-
1. परिवार कल्याण या किसी रीति के अनुसार उत्प्रेरित करके रोकना।
2.सरकार के कार्यों से पुलिस बल के हित उन्नति के लिए अधिकारी द्वारा रोका जाना। (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com