भारतीय धार्मिक शास्त्रों में प्रत्येक एकादशी की तिथि को महत्वपूर्ण बताया गया है लेकिन इनमें से कुछ एकादशी तिथि ऐसी हैं जिनके व्रत एवं विधि विधान से पूजा पाठ करने पर चमत्कारी परिणाम मिलते हैं। विजया एकादशी, एक ऐसा ही व्रत है। दक्षिण में समुद्र के तट पर पहुंचने के बाद जब भगवान श्रीराम को लंका तक पहुंचने का कोई मार्ग नहीं सोच रहा था तब विजया एकादशी के व्रत के प्रभाव से उन्हें समुद्र से रास्ता मिला। तभी से सारी दुनिया में श्री राम भक्त विजया एकादशी का व्रत नियम पूर्वक करते हैं और उन्हें जीवन में सफलताएं प्राप्त होती हैं।
जन्मपत्रिका में पितृदोष वालों के लिए एकमात्र प्रभावशाली विजया एकादशी व्रत
सभी व्रतों में एकादशी का व्रत सबसे प्राचीन माना जाता है। पद्म पुराण के अनुसार स्वयं महादेव ने नारद जी को उपदेश देते हुए कहा था कि, ’एकादशी महान पुण्य देने वाली होती है’। कहा जाता है कि जो मनुष्य विजया एकादशी का व्रत रखता है उसके पितृ और पूर्वज कुयोनि को त्याग स्वर्ग लोक जाते हैं। यानी जिन लोगों की जन्मपत्रिका में पित्र दोष है, उनके लिए यह एकमात्र सरल एवं उत्तम उपाय है। साथ ही व्रती को हर कार्य में सफलता प्राप्त होती ही है और उसे पूर्व जन्म से लेकर इस जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है।
विजया एकादशी व्रत सामग्री एवं पूजा विधि
● एकादशी से एक दिन पूर्व एक वेदी बनाकर उस पर सप्त धान्य रखें
● सोने, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी का कलश उस पर स्थापित करें
● एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें
● पंचपल्लव कलश में रखकर भगवान विष्णु की मूर्ति की स्थापना करें
● धूप, दीप, चंदन, फल, फूल व तुलसी आदि से श्री हरि की पूजा करें
● उपवास के साथ-साथ भगवान कथा का पाठ व श्रवण करें
● रात्रि में श्री हरि के नाम का ही भजन कीर्तन करते हुए जगराता करें
● द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन आदि करवाएं व कलश को दान कर दें
● तत्पश्चात व्रत का पारण करें
विजया एकादशी व्रत के संकल्प
एकादशी से पूर्व यानी दशमी तिथि को संकल्प लेने वाले व्यक्ति अथवा दंपति सात्विक भोजन ग्रहण करेंगे। यानी मांसाहार एवं मसाले वाला चटपटा भोजन नहीं करेंगे।
एकादशी के दिवस एवं रात्रि ब्रम्हचर्य का पालन करेंगे। व्रत करने वाला व्यक्ति अथवा दंपति भजन कीर्तन करते हुए अथवा उनका श्रवण करते हुए रात्रि काल व्यतीत करेंगे।
इस प्रकार विधिपूर्वक उपवास रखने से उपासक को कठिन से कठिन हालातों पर भी विजय प्राप्त होती है।
विजया एकादशी व्रत कथा- vijaya Ekadashi vrat katha
ऐसा कहा जाता है कि त्रेता युग में जब भगवान श्री राम लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र तट पर पहुँचे, तब मर्यादा पुरुषोत्तम ने समुद्र देवता से मार्ग देने की प्रार्थना की परन्तु समुद्र देव ने श्री राम को लंका जाने का मार्ग नहीं दिया तब श्री राम ने वकदालभ्य मुनि की आज्ञा के अनुसार विजया एकादशी का व्रत विधि पूर्वक किया जिसके प्रभाव से समुद्र ने प्रभु राम को मार्ग प्रदान किया। इसके साथ ही विजया एकादशी का व्रत रावण पर विजय प्रदान कराने में सहायक सिद्ध हुआ और तभी से इस तिथि को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है।