शनि देव के दंड से बचना है तो 28 मार्च को व्रत, उपवास और कथा कीजिए- PANDITJI or PANCHANG

यह तो सभी जानते हैं कि जब शनि देव की दृष्टि पड़ती है तो न्याय होता है। पापियों को दंड मिलता है। पुण्य कर्म करने वालों को अच्छा फल मिलता है। कई बार मनुष्यों से अनजाने में कुछ पाप हो जाते हैं। इस तरह के पाप कर्मों के दंड से रक्षा के लिए भारतीय शास्त्रों में कुछ विशेष दिवस एवं उपाय निर्धारित किए गए हैं। दिनांक 28 मार्च 2022 को एक ऐसा ही दिन आ रहा है। पापमोचनी एकादशी, का व्रत, उपवास, विधिपूर्वक पूजा और कथा का श्रवण करने से पिछले 1 वर्ष के कालखंड में अनजाने में हुए पापों से मुक्ति मिल जाती है। दोषपूर्ण पाप कर्मों के प्रायश्चित का अवसर मिलता है। जो लोग यह व्रत नहीं करते उनके पाप कर्म एकत्रित होते जाते हैं और जब शनि की साढ़ेसाती दशा का समय आता है तब पाप कर्मों के लिए दंड भोगना पड़ता है।

पापमोचनी एकादशी की पूजा विधि

एकादशी पूजा के पहले एक वेदी बना कर उस पर 7 प्रकार के अनाज जैसे गेहूं, चना, बाजरा, चावल, उड़द दाल, मूंग, जौ, आदि रखें। फिर वेदी पर पानी से भरा हुआ कलश रखे उस पर आम के पत्ते लगाएं। इसके पश्चात वेदी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना कर पीले पुष्प, तुलसी चंदन, अछत अर्पित कर विधि विधान से पूजन कर पीले मिष्ठान का भोग लगाएं। पूजा करते समय ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करे। साथ ही पापमोचनी एकादशी की कथा सुनें। कथा उपरांत धूप दीप से विष्णु की आरती करें। और भगवान विष्णु को पीले चीजों का भोग लगाएं. बता दें कि वैसे भगवान श्री हरि को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग ही लगाया जाता है. भोग में तुलसी पत्र अवश्य शामिल करें. तुलसी श्री हरि को बेहद प्रिय है. बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते. पापमोचनी एकादशी तिथि 27 मार्च को शाम 06:04 से शुरू होगी जो 28 मार्च को शाम 04:15 पर समाप्त होगी। इस दिन व्रत का पारण 29 मार्च को सुबह 06:15 से सुबह 08:43 तक किया जाएगा।

पापमोचनी एकादशी की व्रत कथा 

पुरातन काल में चैत्ररथ नामक एक बहुत सुंदर वन था। इस वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या किया करते थे। एक समय कामदेव ने मेधावी ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए मंजू घोषा नामक अप्सरा को भेजा। जिसने अपने सौंदर्य से मेधावी मुनि का ध्यान भंग कर दिया और मुनि अप्सरा पर मोहित हो गए। इसके बाद अनेक वर्षों तक मुनि ने अप्सरा के साथ विलास में समय व्यतीत किया। बहुत समय बीत जाने के पश्चचात अप्सरा ने वापस जाने के लिए अनुमति मांगी, तब मेधावी ऋषि को अपनी भूल और तपस्या भंग होने का आत्मज्ञान हुआ। जब ऋषि को ज्ञात हुआ कि अप्सरा ने किस प्रकार से उनकी तपस्या को भंग किया है तो क्रोधित होकर उन्होंने अप्सरा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया। इसके बाद अप्सरा ऋषि के पैरों में गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा। तब ऋषि ने उसे श्राप से मुक्ति पाने के लिए बताया कि पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से तुम्हारे समस्त पापों का नाश हो जाएगा और तुम पुन:अपने पूर्व रूप को प्राप्त करोगी। अप्सरा को मुक्ति का मार्ग बताकर मेधावी ऋषि अपने पिता के महर्षि च्यवन के पास पहुंचे। श्राप की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने कहा कि- 'हे पुत्र यह तुमने अच्छा नहीं किया, ऐसा कर तुमने भी पाप कमाया है, इसलिए तुम भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करो। इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करके अप्सरा को श्राप से मुक्ति मिल गई और मेधावी ऋषि के भी सभी पापों से मुक्ति प्राप्त हो गई। ज्योतिष एवं धर्म से संबंधित समाचार और आलेखों के लिए कृपया religious news पर क्लिक करें.

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!