पुलिस FIR दर्ज करने के बाद इन्वेस्टिगेशन करती है और जब गवाह एवं सबूतों के आधार पर पुलिस को यह विश्वास हो जाता है कि आरोपी ने ही अपराध किया है, तब उसे कोर्ट में सजा के निर्धारण के लिए प्रस्तुत किया जाता है। प्रश्न यह है कि जब पुलिस इन्वेस्टिगेशन में एक व्यक्ति अपराधी साबित हो जाता है तो फिर कोर्ट को किस कानून ने यह अधिकार दिया कि वह पुलिस द्वारा घोषित अपराधी को दोषमुक्त कर दे।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 232 की परिभाषा:-
जब कोर्ट में किसी अपराध के विषय में ट्रायल चल रहा होता है तब न्यायालय के सामने अभियोजन और आरोपी दोनों पक्षों की ओर से गवाह एवं सबूत प्रस्तुत किए जाते हैं। न्यायधीश दोनों पक्षों को समान भाव से सुनता है और जब विधि के अनुसार यह विश्वास करने के पर्याप्त कारण उपलब्ध हो जाते हैं कि पुलिस द्वारा अपराधी घोषित किए गए व्यक्ति ने अपराध नहीं किया है तब सीआरपीसी की धारा 232 के तहत आरोपी को दोष मुक्त घोषित किया जाता है।
उन्मोचन एवं दोषमुक्ति में सामान्य अंतर:-
1. उन्मोचन अंतिम न्याय निर्णय नहीं है जबकि दोषमुक्ति अंतिम न्याय निर्णय होगा।
2. दोषमुक्ति होने पर दोबारा उस अपराध का विचारण नहीं किया जाएगा लेकिन उन्मोचन होने के बाद दोबारा अपराध पर विचारण हो सकता है।
3. आरोपी को उन्मोचन जमानत के आधार पर दिया जाता है जबकि दोषमुक्ति में जमानत की आवश्यकता नहीं होती है। (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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