कोर्ट में ट्रायल के दौरान दोनों पक्षों की ओर से गवाह एवं सबूत पेश किए जाते हैं। अभियोजन (फरियादी एवं पीड़ित पक्ष) अपराध का होना एवं आरोपी के द्वारा अपराध किया जाना प्रमाणित करता है जबकि आरोपी स्वयं को निर्दोष साबित करने के लिए गवाह-सबूत पेश करता है। आइए पढ़ते हैं कि यह प्रक्रिया अनुशासनबद्ध होती है या फिर दोनों पक्ष अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार गवाह-सबूत पेश कर सकते हैं।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 231 की परिभाषा:-
उपर्युक्त धारा के अंतर्गत न्यायालय ऐसे सभी सबूतों को अभियोजन पक्ष से मंगवायेगा जो आरोपी व्यक्ति के खिलाफ अभियोजन (फरियादी, पीड़ित) प्रस्तुत करना चाहता है एवं जिसके माध्यम से अपराध को प्रमाणित किया जा सकता है।
मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वह आरोपी पक्ष के साक्ष्यों का सबूतों को तब तक नहीं सुनेगा जब तक पीड़ित पक्ष को सुना जा रहा है, अर्थात इस धारा में स्पष्ट किया गया है की पहले साक्ष्य आरोपी के खिलाफ अभियोजन पक्ष द्वारा लिए जाएंगे।
महत्वपूर्ण वाद:-【विजयन बनाम राज्य】= उक्त मामले में एक महिला अपने पति के साथ कमरे में सो रही थी। आरोपी व्यक्ति ने उसे रात में जगाया और एक स्थान पर ले जाकर बलात्संग किया। आरोप की एफआईआर दो दिन बाद दर्ज हुई। पु परीक्षा के समय उसके पति की साक्षी के रूप में परीक्षा नहीं की गई। न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि साक्ष्य की पुष्टि के लिए न्यायालय में उसके पति की परीक्षा कराने में विफल रहना निश्चित रूप से अभियोजन (पीड़ित) के पक्ष कथन के लिए घातक एवं हर स्थिति में इसका विपरीत आशय लगाया जा सकता है।
इसी प्रकार अन्वेषण अधिकारी की परीक्षा न कराने के परिणामस्वरूप आरोपी पक्ष पीड़ित पक्ष-कथन और उसके साक्षियो की सत्यता की परीक्षा करने के अवसर से वंचित रह जाता है। अर्थात ऐसे मामले में दोष सिद्धि कायम नहीं रह सकती है। (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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