FIR (प्रथम सूचना प्रतिवेदन) के आधार पर पुलिस अधिकारी मामले की इन्वेस्टिगेशन शुरू करता है। इस दौरान नियमानुसार जांच अधिकारी दोनों पक्षों (पीड़ित पक्ष और आरोपी पक्ष) के गवाह एवं सबूत शामिल करता है और पूरी जांच रिपोर्ट अपने अभिमत एवं निष्कर्ष के साथ कोर्ट में प्रस्तुत करता है। कई बार विभिन्न कारणों से आरोपी पक्ष के कुछ गवाह या सबूत पुलिस की केस डायरी में शामिल नहीं होते। आइए जानते हैं क्या आरोपी ऐसे गवाहों को कोर्ट में प्रस्तुत कर सकता है या नहीं।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 233 की परिभाषा:-
• जब आरोपी अपने ऊपर लगे आरोपों को स्वीकार नहीं करता है तब उपर्युक्त धारा के अंतर्गत अपनी प्रतिरक्षा के साक्ष्य मजिस्ट्रेट को देगा।
• अगर आरोपी मौखिक साक्ष्य देता है तब मजिस्ट्रेट उसके कथनों को लिखेगा।
• आरोपी को लगता है कि उसके पक्ष में कोई गवाह मौजूद हैं तो वह मजिस्ट्रेट से उसे गवाही के लिए बुलवाने के लिए आवेदन कर सकता है। मजिस्ट्रेट को यह ठीक लगता है तब वह आरोपी के आवेदन को स्वीकार कर आदेश जारी कर सकता है साक्षी एवं साक्ष्य को अन्य व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत करने के लिए।
अर्थात उपर्युक्त धारा आरोपी को अपनी प्रतिरक्षा या निजी सुरक्षा के साक्ष्य को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार देती है अगर साधारण शब्दों में कहे तो यह धारा आरोपी को झूठे या मिथ्था आरोप को बचाती है। (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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