दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 211 आरोपों की अंतर वस्तु के बारे में बात करती है एवं उपधारा (7) कहती है की पूर्व दोषसिद्ध अपराधी के ऊपर किस प्रकार का आरोप पत्र बनाया जाता है या आरोप लगाए जाते हैं। ऐसे में आरोपी व्यक्ति अपने आरोपों को स्वीकार नही करता है तब मजिस्ट्रेट साक्ष्यों के आधार पर उसे दोषसिद्धि या दोषमुक्त करेगा एवं पूर्व दोषसिद्धि के साक्ष्यों को लेगा जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 236 की परिभाषा
जब किसी व्यक्ति के विरुद्ध प्रस्तुत किए गए आरोपपत्र में पुराने दोष सिद्ध अपराध का विवरण दर्ज किया गया है, एवं वह व्यक्ति पहले के दोषों को स्वीकार नहीं करता है तब मजिस्ट्रेट पूर्व दोषसिद्धि के अपराधों को साबित करने से पहले अभी लगाए गए आरोपों के अपराध को साबित करेगा, उसके बाद पूर्व में लगाए आरोपों से आरोपी को दोषसिद्धि या दोषमुक्त करेगा।
• अगर आरोपी का विचारण के लिए प्रस्तुत किया गया मुख्य अपराध साबित हो जाता है तब पूर्व दोषसिद्धि के साक्ष्य को मजिस्ट्रेट लेगा अन्यथा पूर्व दोषसिद्धि के बारे में न तो आरोपी से चर्चा करेगा न ही कोई अभिवचन लेगा।
अर्थात यह धारा बताती है कि आरोपी व्यक्ति पर दोबारा किसी अपराध का आरोप लगाया गया है तब न्यायालय वर्तमान अपराध के बारे में विचारण करेगा पहले एवं वर्तमान आरोपो में दोषसिद्धि होने के बाद ही पूर्व दोषसिद्धि के अपराध को देख कर दण्डादेश देगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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