भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय 21 की धारा 500 से धारा 502 तक मानहानि करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध अपराधों को बताया गया है एवं राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, राज्य या केन्द्र के प्रशासनिक अधिकारियों, राज्य या केन्द्र सरकार के मंत्रियों की कोई मानहानि करता है तब यह मामला सत्र न्यायालय द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 192 की उपधारा 2 के अनुसार सुनवाई योग्य होगा। उक्त धारा के अनुसार सुनवाई अभियोजन पक्ष के सरकारी वकील द्वारा प्रारंभ होगी। ऐसे में किसी उपर्युक्त पदाधिकारी या मंत्री या राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या राज्यपाल के राज्यपाल द्वारा लगाया गया आरोप सिद्ध नहीं होता है, तब मजिस्ट्रेट किस प्रकार अपना निर्णय देगा जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 237 की परिभाषा (सरल एवं संक्षिप्त शब्दों में):-
किसी आरोपी व्यक्ति पर किसी भी प्रकार से मानहानि का मामला दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 192 (2) के अधीन सत्र न्यायालय में विचारणीय है तब मजिस्ट्रेट विचारण की कार्यवाही स्वयं के विवेकानुसार करेगा।
• अगर किसी पक्षकार को बंद कमरे में सुनवाई करवानी हैं तब मजिस्ट्रेट बंद कमरे में सुनवाई करवा सकता है लेकिन किसी भी पक्षकार को किसी भी प्रकार का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होना चाहिए।
• अगर आरोपी व्यक्ति पर लगे आरोप सिद्ध हो जाते हैं तब पीड़ित पक्षकार दण्ड या मानहानि की क्षति की मांग कर सकता है।
• लेकिन आरोपी व्यक्ति पर लगें आरोप सिद्ध नहीं हुए तब अभियोजन पक्षकार को आरोपी व्यक्ति को प्रतिकर देना होगा। प्रतिकर राशि एक हजार रुपये से अधिक नहीं होगी एवं राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल एवं मंत्रीगण आरोपी पक्ष को प्रतिकर देने के लिए बाध्य नहीं होंगे।
• अगर किसी पीड़ित पक्षकार को लगता है कि फैसला जो आरोपी पक्ष में है या आरोपी को लगता है की सत्र न्यायालय का दिया गया फ़ैसला पीड़ित पक्ष में दिया गया गलत निर्णय या फैसला गलत है, तब ऐसा कोई भी पक्षकार अपीली न्यायालय अर्थात हाई कोर्ट में बीस दिन के भीतर अपील कर सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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