दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के तहत पुलिस अपनी इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट अर्थात चार्ट शीट ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट के पास भेजती है। मैजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा प्रस्तुत किए गए चालान की समीक्षा करता है। इस दौरान डिसीजन लिया जाता है कि पुलिस की इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट को ट्रायल के लिए किस सत्र न्यायालय में भेजना है अथवा आरोपी को ट्रायल से पहले ही बुक कर देना है। आइए जानते हैं, वह कौन सी होती है जब किसी आरोपी को कोर्ट में ट्रायल से पहले ही मुक्त कर दिया जाता है:-
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 239 की परिभाषा:-
जब किसी अपराध की पुलिस रिपोर्ट संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास पहुँचती हैं तब मजिस्ट्रेट उपर्युक्त धारा के अंतर्गत आरोपी पक्ष की परीक्षा करेगा अगर मजिस्ट्रेट को लगता हैं कि पुलिस रिपोर्ट में लगे आरोपों को साबित करने के कोई ठोस साक्ष्य नहीं है तब मजिस्ट्रेट आरोपी को उन्मोचित कर देगा, अगर पुलिस रिपोर्ट संदेह के परे है तो आरोपी को उन्मोचित करने से पहले जमानत (बॉन्ड) भी ले सकता है न्यायालय।
हम कह सकते हैं- कि सीआरपीसी की धारा 239 के तहत मजिस्ट्रेट किसी आरोपी को ट्रायल से पहले ही मुक्त कर सकता है, लेकिन ऐसा केवल तक किया जा सकता है जब मजिस्ट्रेट के पास यह विश्वास करने का पुख्ता आधार हो की पुलिस के चालान में अपराध के घटित होने और उसमें आरोपी के शामिल होने का कोई सबूत मौजूद नहीं है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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