जब किसी व्यक्ति पर किसी सीरियस क्राइम (संज्ञेय अपराध) का आरोप लगता है, तब पुलिस FIR दर्ज करने के बाद इन्वेस्टिगेशन करती है और अपनी इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करती है। याद रहे की कोई भी जिला न्यायालय या सेशन न्यायालय डायरेक्ट किसी पुलिस रिपोर्ट पर विचारण नहीं कर सकता, जब तक अधीनस्थ न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी मामले को उसे सुपुर्द नहीं करेगा।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 241-242
अगर कोई आरोपी न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष अपने ऊपर लगे हुए आरोपो को स्वीकार करता है, तब मजिस्ट्रेट आरोपी को स्वविवेकानुसार दण्ड प्रक्रिया संहिता,1983 की धारा 241 के अंतर्गत दोषसिद्धि कर सकता हैं लेकिन अगर आरोपी अपने ऊपर लगे आरोपों स्वीकार नही करता है या आपने ऊपर लगे आरोपों का विचारण के दावा करता हैं तब मजिस्ट्रेट दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 242 के अंतर्गत पहले निम्न प्रकार की कार्यवाही करेगा:-
1. मजिस्ट्रेट फरियादी पक्ष के साक्षियों की गवाही के लिए दिनांक निश्चित करेगा एवं मजिस्ट्रेट आरोपी को पुलिस अन्वेषण के दौरान अभिलिखित किए गए साक्षियों के कथन प्रदान करेगा।
2. मजिस्ट्रेट फरियादी के आवेदन पर उसके साक्षियों को या दस्तावेज या अन्य किसी वस्तु को पेश करने के लिए समन भी जारी करेगा।
3. अगर मजिस्ट्रेट चाहे तो साक्षियों की पुनः परीक्षा करवा सकता है या नए साक्षियों को बुलवा भी गवाही के लिए बुलाया सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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