बोरोलिन को कौन नहीं पहचानता। स्किन केयर से लेकर सूजन की प्रॉब्लम तक और चोट लग जाए तो घाव को भरने के लिए भी बोरोलिन का उपयोग किया जाता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस एंटीसेप्टिक क्रीम ने भारत में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी और आजादी का जश्न भी मनाया। पढ़िए आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक बने पहले प्रोडक्ट की कहानी:-
आत्मनिर्भर भारत का पहला प्रोडक्ट
बात 90 साल पुरानी है, सन 1929 में बंगाल के कारोबारी गौर मोहोन दत्ता ने अपनी कंपनी जीडी फार्मास्यूटिकल्स प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से एक खुशबूदार ब्यूटी क्रीम बनाना शुरू किया। हरे रंग की पैकिंग में इस क्रीम का नाम बोरोलिन रखा गया। ठीक इसी समय भारत में महात्मा गांधी का स्वदेशी आंदोलन चल रहा था। लोगों से विदेशी उत्पादों के बहिष्कार की अपील की जा रही थी। जैसे सब कुछ पलक झपकते ही हो गया। बोरोलिन क्रीम, स्वदेशी आंदोलन में शामिल हो चुकी थी। स्वदेशी उत्पादों की लिस्ट में बोरोलिन सबसे टॉप पर थी। यह आत्मनिर्भर भारत का पहला प्रोडक्ट बना जिसे आंदोलन द्वारा मान्यता दी गई।
बोरोलिन- आत्मनिर्भर मतलब ₹1 का लोन तक नहीं लिया
कारोबारी गौर मोहोन दत्ता ने भी अपने प्रोडक्ट को 100% स्वदेशी और आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प उठा लिया। अंग्रेजों की लाठियां खाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को बोरोलिन फ्री में दी जाती थी। ताकि दर्द थोड़ा कम हो और चोट जल्दी से ठीक हो जाए। सबसे खास बात यह है कि इस कंपनी ने आत्मनिर्भर शब्द का 100% पालन किया। स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी लेकिन सरकार से ₹1 का लोन तक नहीं लिया।
बोरोलिन ने आजादी का जश्न भी मनाया
सन 1947 में जब भारत आजाद हुआ तब महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन की साथी बनी बोरोलिन ने भी आजादी का जश्न मनाया। जश्न में मौजूद 100000 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को त्वचा का सौंदर्य निखारने के लिए बोरोलिन क्रीम फ्री में दी गई। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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