नटवरलाल को ठगों का देवता क्यों कहा जाता है, उसकी मृत्यु कब हुई- GK in Hindi

भारत में ठगी करने वालों को आज भी नटवरलाल कहा जाता है। उसकी कहानियां आज भी सुनाई जाती हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब भारत में हजारों करोड़ रुपए के घोटाले करने वाले मौजूद हैं तो फिर आज भी नटवरलाल को ही ठगों का देवता क्यों कहा जाता है। 

नटवरलाल की कहानियां 

नटवरलाल का असली नाम मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव था। उसका जन्म सन 1912 में बिहार राज्य के बंगरा गाँव में हुआ था। इस गांव के लोग आज भी गर्व महसूस करते हैं कि उनके यहां नटवरलाल का जन्म हुआ था। नटवरलाल की सबसे खास बात यह थी कि वह किसी के भी हुबहू हस्ताक्षर करने में माहिर था। उसके पिता जमीदार थे और पैसे की कोई कमी नहीं थी लेकिन ठगी को नटवरलाल एक कला मानता था। 

नटवरलाल का नाम नटवरलाल कैसे पड़ा

नटवरलाल के खिलाफ भारत के 8 राज्यों में 100 से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं। विभिन्न प्रकरणों की सुनवाई में न्यायालयों द्वारा उसे कुल 111 साल की सजा सुनाई गई थी। आधे से ज्यादा मामलों में फैसला ही नहीं हो पाया। कहते हैं कि पुलिस उसे कभी गिरफ्तार नहीं कर पाई। वह खुद जब चाहता गिरफ्तार हो जाता था और जब चाहता था फरार हो जाता था। 8 राज्यों में दर्ज FIR में फरियादियों ने उसे 50 से अधिक नामों से पुकारा। सभी मामलों को एक फाइल में रिकॉर्ड करने के लिए उसे एक कॉमन नाम दिया गया, नटवरलाल। 

नटवरलाल की ठगी का पहला शिकार कौन था

नटवरलाल की ठगी का सबसे पहला शिकार उसका पड़ोसी हुआ। नटवरलाल ने उस जमाने में पड़ोसी के हस्ताक्षर से उसके बैंक अकाउंट से ₹1000 निकाल लिए थे। कुछ दिनों बाद बिहार में राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद से मुलाकात का अवसर मिला। उसने बताया कि वह एक कलाकार है और किसी के भी हुबहू हस्ताक्षर कर सकता है। इस बहाने उसने राष्ट्रपति के हस्ताक्षर प्राप्त कर लिए। 

नटवरलाल भारत की कौन-कौन सी संपत्ति बेच दी थी

भारत के राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से नटवरलाल ने एक बार राष्ट्रपति भवन, दो बार लालकिला और तीन बार ताजमहल बेच दिया था। एक बार उसने भारत की संसद की रजिस्ट्री कर दी थी। यह घटना उस समय हुई थी जब संसद के अंदर सभी सांसद मौजूद थे। नटवरलाल दावा करता था कि यदि उसे भारत के लिए काम करने का मौका मिले तो वह ना केवल भारत का पूरा कर्जा खत्म कर देगा बल्कि कई देशों को भारत का कर्जदार बना देगा।

ऐसा कोई बचा नहीं जिसे नटवरलाल ने ठगा नहीं 

70 के दशक से सक्रिय हुआ नटवरलाल 90 के दशक तक भारत सरकार के लिए सिरदर्द बना रहा। उन दिनों में कहा जाने लगा था कि 'ऐसा कोई बचा नहीं जिसे नटवरलाल ने ठगा नहीं।' इसका अर्थ यह था कि भारत के प्रत्येक उद्योगपति को नटवरलाल ठगी का शिकार बना चुका था। इन उद्योगपतियों में टाटा, बिड़ला और धीरूभाई अंबानी भी शामिल हैं। वह भेष बदलने में माहिर था। 

नटवरलाल को आखरी बार कब देखा गया

नटवरलाल को आखरी बार 24 जून 1996 को देखा गया। उसकी उम्र 75 साल थी। वह बीमार था और पुलिस की गिरफ्त में आ गया था। कानपुर में न्यायधीश से उसने निवेदन किया कि उसकी तबीयत बहुत खराब है और उसे इलाज के लिए एम्स दिल्ली भेजना चाहिए। न्यायधीश ने कड़ी पुलिस व्यवस्था और एक डॉक्टर के साथ उसे दिल्ली एम्स में भर्ती करने के लिए कहा। नटवरलाल कानपुर से दिल्ली रेलवे स्टेशन तक आ गया। यात्रा के दौरान उसने सभी पुलिस कर्मचारियों और डॉक्टर का विश्वास जीत लिया, फिर अचानक दिल्ली रेलवे स्टेशन पर बीमारी का नाटक करने लगा और टॉयलेट से फरार हो गया। 

नटवरलाल की मृत्यु कब हुई

नटवरलाल की मृत्यु आज भी रहस्य बनी हुई है। कोर्ट में नटवरलाल के वकील ने बताया कि उसकी मृत्यु 25 जुलाई 2009 को हो चुकी है। इसलिए उसके खिलाफ चल रहे सभी केस बंद कर दिया जाए। उसके छोटे भाई गंगा प्रसाद ने बयान दिया कि रांची में नटवर लाल उर्फ मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव का अंतिम संस्कार कर दिया गया है, लेकिन न्यायालय में मृत्यु का कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया जा सका। नटवरलाल की मृत्यु आज भी संदिग्ध बनी हुई है। 

नटवरलाल को ठगों का देवता क्यों कहा जाता है 

देवता का एक अर्थ होता है अमर हो जाना। नटवरलाल के फरार होने के बाद से उसे किसी ने नहीं देखा। निश्चित रूप से उसकी मृत्यु हो गई होगी क्योंकि यदि जिंदा होता तो उसकी उम्र 110 साल होती, लेकिन अपराध की दुनिया में अपराधी की मृत्यु कब मानी जाती है जब उसकी मृत्यु का प्रमाण उपलब्ध हो। कोर्ट में उसके वकील ने बताया कि उसकी मृत्यु 25 जुलाई 2009 को हो गई है। भाई गंगा प्रसाद ने बयान दिया कि रांची में उसका अंतिम संस्कार किया गया लेकिन मृत्यु और अंतिम संस्कार का कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाए। यानी कि नटवरलाल अमर हो गया। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article 
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