इंदौर। मिल्की-वे टॉकीज मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश भर में कई विवादों के लिए प्रारंभिक स्तर पर निर्णय का कारण बन सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्धारित किया है कि नगरीय प्रशासन द्वारा यदि कोई लीज स्वीकृत की गई है तो उसे शासन स्तर पर निरस्त किया जा सकता है। इस प्रकार की कार्रवाई को अवैध नहीं कहा जा सकता।
सिनेमाघर के लिए लीज पर दी गई थी जमीन, दुरुपयोग होने लगा था
इंदौर के व्यापारी होमी रागीना को सिनेमाघर के संचालन के लिए दशकों पहले नगर निगम द्वारा सरकारी जमीन लीज पर दी गई थी। वित्तीय वर्ष 1992-93 में इस जमीन की लीज समाप्त हो गई थी, जिसका नगर निगम द्वारा नवीनीकरण कर दिया गया। इधर लीज की जमीन पर सिनेमाघर का संचालन बंद हो गया। दूसरे कई प्रकार के कारोबार शुरू हो गए। जमीन पर अवैध कब्जे होने लगे। शासन को पता चला तो उसने लीज निरस्त कर दी।
डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने शासन के आदेश को निरस्त कर दिया था
होमी रागीना के उत्तराधिकारी होने शासन द्वारा की गई निरस्ती की कार्यवाही को अवैध बताया क्या। इंदौर कलेक्टर की कोर्ट में उन्होंने दावा किया कि उन्हें नगर निगम ने जमीन लीज पर दी है। नगर निगम ने नवीनीकरण भी कर दिया है। शासन को लीज निरस्त करने का कोई अधिकार नहीं है। इंदौर के कलेक्टर एवं डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने इस तर्क से सहमत होते हुए शासन के लीज निरस्त करने वाले आदेश को निरस्त कर दिया था।
शासन की तरफ से डिस्टिक मजिस्ट्रेट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई परंतु हाई कोर्ट ने भी डिस्टिक मजिस्ट्रेट के फैसले को सही ठहराया। मामले की अपील सुप्रीम कोर्ट में की गई। सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि सरकारी जमीन सिनेमाघर के संचालन के लिए लीज पर दी गई थी, परंतु अब उस जमीन पर सिनेमाघर का संचालन नहीं होता। शासन को अधिकार है कि लीज के नियमों का उल्लंघन करने वालों की लीज निरस्त कर दी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को सही मानते हुए, मिल्की वे टॉकीज के नाम पर 19200 वर्ग फीट की जमीन को सरकारी घोषित कर दिया है। अब कलेक्टर को यह जमीन खाली करवानी है। भारत की महत्वपूर्ण खबरों के लिए कृपया INDIA NATIONAL NEWS पर क्लिक करें.