साइबर आतंकवादी कौन होते हैं, क्या करते हैं, किस धारा के तहत कितनी सजा मिलती है, पढ़िए IT Act,2000

Bhopal Samachar
आतंकवादी और साइबर आतंकवादी में अंतर है। आतंकवादी को पहचाना जा सकता है क्योंकि उसके पास हथियार होता है लेकिन साइबर आतंकवादी को आप पहचान नहीं सकते क्योंकि उसके पास एक बढ़िया स्मार्टफोन, लैपटॉप या कंप्यूटर होता है। यह आपके आसपास कहीं भी हो सकता है। कई बार अज्ञानता के कारण आपका कोई परिचित भी साइबर आतंकवादियों के संगठन का हिस्सा हो सकता है। इसलिए जानना जरूरी है कि साइबर आतंकवाद क्या होता है। साइबर आतंकवादी कौन होते हैं। वह क्या करते हैं। और किस कानून की किस धारा के तहत उनके कार्यों को अपराध घोषित किया गया है।

साइबर आतंकवाद क्या होता है, सरल परिभाषा

देश की एकता, अखंडता, सम्प्रुभता या जनता समूह को गंभीर क्षति पहुचाना आतंकवाद होता है एवं जो व्यक्ति ऐसा कृत्य करता है उसे आतंकवादी कहते हैं। ऐसे आतंकवादी को दण्डित करने के लिए भारतीय दण्ड संहिता में दण्ड का प्रावधान किया गया है। अगर कोई व्यक्ति यही अपराध कम्प्यूटर साधन के माध्यम से करे या शासकीय सुरक्षा में रखे कम्प्यूटर को हैक करके किसी राज्यो या विदेशों के मैत्रीपूर्ण सम्बधों को क्षति पहुचाए तब यह साइबर आतंकवाद का अपराध होगा, जानिए किस कानून में इसको दंडनीय अपराध माना है।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66(च) की परिभाषा

• जो कोई व्यक्ति भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा,प्रभुता को खतरे में डालने के लिए या जनता या व्यक्तियों के किसी वर्ग में वैमस्य,शत्रुता, घ्रणा आदि उत्पन्न करने के उद्देश्य से या राष्ट्र या राज्य की मानहानि करेगा आदि अपराध कम्प्यूटर सिस्टम द्वारा करेगा या दोषपूर्ण (भड़काऊ) संदेश भेजेगा या कंप्यूटर साधन द्वारा कोई अपकृत्य कार्य करेगा जिससे कि देश की एकता, अखंडता उपर्युक्त आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े।

• या  राज्य या केन्द्र सरकार के संरक्षण प्राप्त कम्प्यूटर को प्रदूषित करेगा अर्थात डाटा सार्वजनिक करेगा, हैंक करेगा, किसी वायरस द्वारा प्रदूषित करेगा या किसी मूलभूत दस्तावेजों को कूटरचित करके राष्ट्रीय की एकता को खतरा उत्पन्न करेगा या विदेशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों प्रतिकूल प्रभाव वाले कार्य करेगा। 
ऐसा करने वाला व्यक्ति उपर्युक्त धारा 66 (च) के अंतर्गत साइबर आतंकवाद के अपराध का दोषी होगा।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66(च) के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान

यह अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है, यह संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध हैं। इनका विचारण सत्र न्यायालय द्वारा किया जाएगा अधिनियम के अनुसार अपराध का इन्वेस्टिगेशन करने की शक्ति निरीक्षक(इंस्पेक्टर) की नीचे की पक्ति के पुलिस अधिकारी को नहीं हैं। सजा- इस अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को आजीवन कारावास से दण्डित किया जा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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