स्कूलों के लिए सरकार के पास पैसा नहीं, शिक्षा मंत्री ने कहा चंदा लेकर चलाओ - MP NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल।
स्कूल और अस्पतालों के लिए मध्य प्रदेश की जनता बेहिसाब टैक्स दे रही है। यहां तक कि बिजली के बिल में भी शिक्षा के विकास के लिए टैक्स दिया जाता है। इसके बावजूद सरकार का कहना है कि स्कूलों के विकास के लिए उसके पास बजट नहीं है। शिक्षा मंत्री ने घोषणा की है कि जनता से चंदा लेकर स्कूलों का विकास करें। 

मध्य प्रदेश शासन के स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री इंदर सिंह परमार ने SMC सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कि, शिक्षा समाज का दायित्व है। उन्होंने व्यवस्था दी है कि शाला प्रबंधन समिति के माध्यम से जनभागीदारी से विद्यालयों का विकास करें। पैसा जुटाने के लिए 'हमारा विद्यालय हमारा कोष" स्थापित किया गया है। स्कूल के पुराने छात्रों से संपर्क करके उनसे चंदा मांगा जाएगा।

निशुल्क शिक्षा समाज की नहीं सरकार की जिम्मेदारी है

यहां उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत निशुल्क शिक्षा समाज का नहीं बल्कि सरकार की जिम्मेदारी है। यहां ध्यान दिलाना जरूरी है कि RTE के तहत प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन कराने से सरकार की जिम्मेदारी खत्म नहीं होती। क्योंकि प्राइवेट स्कूल केवल ट्यूशन फीस माफ करते हैं, शेष कई प्रकार के शुल्क भुगतान करने पड़ते हैं। जबकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत निर्धन विद्यार्थियों को निशुल्क शिक्षा का प्रावधान है। निशुल्क शिक्षा में स्कूल, शिक्षक, फर्नीचर, पाठ्य पुस्तकें, खेल का मैदान और शेष सब कुछ शामिल है।

समाज अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है, सरकार घोटाला ना करें 

एडवोकेट अजय गौतम का कहना है कि शिक्षा के लिए समाज अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है। वह प्रत्येक उत्पाद की खरीद में GST का भुगतान करता है। सबसे महंगी हो चुके पेट्रोल में सबसे ज्यादा अतिरिक्त टैक्स (जो केवल मध्यप्रदेश में लगे हैं) का भुगतान करता है। समाज के वह लोग भी शिक्षा के लिए योगदान कर रहे हैं जिनके बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ते। इसलिए समाज अपना योगदान दे रहा है। सरकार को चाहिए कि वह अपनी जिम्मेदारी निभाएं। जो पैसा शिक्षा के लिए मिला है उसे शिक्षा पर खर्च करें। घोटाला ना करें। विपक्ष सरकार का मित्र हो सकता है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि सरकार पर सवाल नहीं उठ पाएंगे। मध्य प्रदेश की महत्वपूर्ण खबरों के लिए कृपया mp news पर क्लिक करें.

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