भोपाल। मध्य प्रदेश प्राथमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा के अंत में उठे बवंडर के दौरान पता चला है कि परीक्षा का आयोजन करने वाली एजेंसी साईं एजुकेयर पेटी कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रही थी। सवाल यह है कि यदि पेटी कॉन्ट्रैक्ट पर एजेंसी काम कर सकती है तो इसी नियम के आधार पर उम्मीदवार की जगह सॉल्वर परीक्षा क्यों नहीं दे सकता। परीक्षा जैसे संवेदनशील विषय में इतनी बड़ी गड़बड़ी वाले नियम किसने और क्यों बनाए।
पेटी कॉन्ट्रैक्ट क्या होता है, MP TET VARG-3 से क्या कनेक्शन है
सरकार ने प्रतियोगी परीक्षा के आयोजन के लिए प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड का गठन किया। उम्मीदवारों ने प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड को परीक्षा की फीस दी। PEB का काम है परीक्षा का आयोजन करना लेकिन PEB ने ऐसा नहीं किया। उसने ऑनलाइन परीक्षा के लिए एजेंसी (एडुक्विटी कंपनी) नियुक्त कर दी। यानी परीक्षा का पूरा काम ठेके पर दे दिया। कृपया ध्यान दीजिए, जिस कंपनी को परीक्षा का ठेका मिला उसने भी परीक्षा आयोजित नहीं कराई बल्कि इसके लिए एक नई कंपनी साईं एजुकेयर को नियुक्त कर दिया। महत्वपूर्ण सवाल है कि यदि साईं एजुकेयर, परीक्षा के आयोजन करने में सफल कंपनी है तो डायरेक्ट उसे काम क्यों नहीं दिया और सबसे बड़ा सवाल यह है कि किसी को भी काम क्यों दिया। PEB का गठन क्या टाइम टेबल और रिजल्ट जारी करने के लिए किया गया है।
परीक्षा में सॉल्वर क्या होता है, व्यापम घोटाले से क्या कनेक्शन है
दुनिया भर में चर्चित मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले के पीछे सॉल्वर सिस्टम जिम्मेदार था। यानी एक उम्मीदवार जिसने परीक्षा के लिए फॉर्म भरा है, उसकी जगह पर कोई दूसरा व्यक्ति परीक्षा देने आता था। किसी दूसरे व्यक्ति को सॉल्वर कहा गया। यह बिल्कुल ऐसा ही है परीक्षा का आयोजन करने के लिए एक कंपनी को काम दिया और परीक्षा का आयोजन करने दूसरी कंपनी आ गई। व्यापम घोटाले में उम्मीदवार और सॉल्वर के बीच सौदा हो गया था। इस मामले में दो कंपनियों के बीच सौदा हो गया।
यदि उम्मीदवार और सॉल्वर के बीच सौदा गैरकानूनी है और अपराध है तो फिर उसी परीक्षा में दो कंपनियों के बीच सौदा कानूनी कैसे हो गया। ✒ सभी लाचार और मजबूर 1000000 उम्मीदवारों की तरफ से आशीष दुबे