कर्मचारी को NOTICE DATE से पहले बर्खास्त नहीं कर सकते, हाईकोर्ट का आदेश- MP karmchari news

जबलपुर
। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कारण बताओ नोटिस के अंतर्गत निर्धारित की गई जवाब की तारीख से पहले कर्मचारी को बर्खास्त नहीं किया जा सकता। इसी कारण से कर्मचारी को बर्खास्त करने का आदेश निरस्त कर दिया गया।

MP employees news- याचिकाकर्ता लोकेश बिस्लावत की समाप्ति का मामला

प्रशासनिक न्यायाधीश शील नागू व न्यायाधीश मनिंदर सिंह भट्टी की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता लोकेश बिस्लावत की ओर से अधिवक्ता आशीष त्रिवेदी व आनंद शुक्ला ने पक्ष रखा। 

3 दिसंबर को नोटिस जारी किया, 8 दिसंबर को बर्खास्त कर दिया

उन्होंने न्यायालय को बताया कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति व्यवहार न्यायालय, मनासा में दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के रूप में आकस्मिक निधि के अंतर्गत वर्ष 2014 में हुई थी। बाद में याचिकाकर्ता की सेवाएं कार्यभारित स्थापना में निरंतर कर दी गई थीं।याचिकाकर्ता को 3 दिसंबर, 2016 को सात दिन की अनुपस्थिति के सम्बन्ध में कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जो याचिकाकर्ता को 5 दिसंबर को तामील किया गया व 8 दिसंबर को याचिकाकर्ता को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। 

याचिकाकर्ता ने बर्खास्तगी के आदेश के विरूद्ध रजिस्ट्रार जनरल, हाई कोर्ट को अभ्यावेदन भी दिया किन्तु अभ्यावेदन भी निरस्त कर दिया गया। याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता को अपना पक्ष रखने सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर नहीं दिया गया। याचिकाकर्ता के पिता बीमार थे और याचिकाकर्ता अपना जवाब प्रस्तुत नहीं कर पाया और हड़बड़ी में याचिकाकर्ता को बर्खास्त कर दिया गया।

कर्मचारी को युक्तियुक्त सुनवाई का अवसर का अधिकार

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में अवधारित किया कि सेवा नियमों में अनावेदक युक्तियुक्त सुनवाई का अवसर प्रदान करने बाध्य है। याचिकाकर्ता को सात दिन की अनुपस्थिति हेतु तीन दिसंबर को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया जिसमें चार दिन के भीतर जवाब देने कहा गया था। याचिकाकर्ता से अपेक्षा की गई थी कि वह सात दिसंबर तक जवाब प्रस्तुत करे। यह नोटिस याचिकाकर्ता को पांच दिसंबर को सुबह 11.30 बजे तामील कराया गया। इसके पूर्व कि याचिकाकर्ता अपना जवाब प्रस्तुत कर सके उसे आठ दिसंबर को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। 

यद्यपि सेवा नियमों में जवाब देने के लिए कोई निश्चित समय सीमा का प्रविधान नहीं है किन्तु जवाब देने के लिए मात्र दो-तीन दिन का अवसर दिया जाना किसी भी तरह से युक्तियुक्त अवसर के रूप में निरूपित नहीं किया जा सकता है। अभिलेखों से यह स्पष्ट नहीं है कि कार्रवाई इतनी हड़बड़ी के साथ क्यों की गई और याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर भी विचार क्यों नहीं किया गया जबकि वह चिकित्सकीय दस्तावेजों से समर्थित था। 

अनुशासनात्मक अधिकारी को यह देखना चाहिए था कि कर्मचारी की अनुपस्थिति जानबूझकर थी या उसकी अनुपस्थिति के पीछे कोई तार्किक कारण था। केवल जानबूझकर अनुपस्थिति के मामले में ही कार्रवाई की जा सकती है। अतः याचिकाकर्ता को युक्तियुक्त अवसर, जवाब प्रदान करने का दिया जाना चाहिए। कर्मचारियों से संबंधित महत्वपूर्ण खबरों के लिए कृपया MP karmchari news पर क्लिक करें.

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!