आपने अक्सर देखा होगा कुछ हवाई जहाज जब आसमान में उड़ते हैं तो उनके पीछे धुंए की एक मोटी लकीर बन जाती है। सवाल यह है कि हवाई जहाज में से इतनी ज्यादा मात्रा में धुंआ क्यों निकलता है। क्या ऐसा तब होता है जब उसका इंजन खराब हो या फिर हवाई जहाज के इंजन में भी मिलावट होती है। आइए पता लगाते हैं:-
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वायुयान के कारण आसमान में बनने वाली उस सफेद लकीर को कंट्रेल्स (Contrails) कहते हैं। यह सिर्फ वायुयान से नहीं बनती बल्कि दुनिया भर में किसी भी प्रकार के रॉकेट से अंतरिक्ष की तरफ उड़ान भरते समय अनिवार्य रूप से बनती है। अपनी मोटरसाइकिल या फिर कार में जब पेट्रोल अथवा डीजल में मिलावट हो या फिर इंजन में कचरा हो तब इस प्रकार का धुंआ निकलता है लेकिन वायुयान के मामले में ऐसा नहीं होता।
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समुद्र तल से गरीब 8 किलोमीटर की ऊंचाई पर जब तापमान माइनस 40 डिग्री सेल्सियस होता है तब किसी भी एरोप्लेन अथवा अंतरिक्ष में जाने वाले रॉकेट से एरोसोल निकलते हैं। कृपया ध्यान दीजिए कि यह हवाई जहाज के साइलेंसर से नहीं निकलते बल्कि एग्जास्ट से निकलते हैं। -40 डिग्री सेल्सियस तापमान होने के कारण बाहर निकलते ही एरोसॉल हवा में जम जाती है और हमें जमीन से Contrails दिखाई देते हैं, जो कुछ ही देर में गायब हो जाते हैं।
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कृपया नोट कीजिए कि हवाई जहाज़ के एग्जॉस्ट से भाप और कई ठोस पदार्थ निकलते हैं। इससे कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड निकलती है। इसके अलावा इसमें से सल्फ़ेट और मीथेन जैसे हाइड्रोकार्बन भी निकलते हैं। इसी के कारण वायुयान की स्पीड मेंटेन होती है और उसके अंदर जीवन यानी इंसान सुरक्षित रहते हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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