भारतीय संविधान में नागरिकों को छः प्रकार के मौलिक अधिकार प्राप्त है जो इस प्रकार है :- (1). समानता का अधिकार, (2). स्वतंत्रता का अधिकार(जिसके अंतर्गत महत्वपूर्ण अधिकार है जीवन जीने की स्वतंत्रता), (3). शोषण के विरुद्ध अधिकार, (4). धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, (5). संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार, एवं (6). संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
अगर सरकार या सरकार के किसी अधिकारी द्वारा नागरिकों के किसी भी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है तब पीड़ित व्यक्ति या वर्ग क्षतिपूर्ति के लिए संवैधानिक उपचार के अधिकार अनुच्छेद 32 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकता है। एवं सुप्रीम कोर्ट को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन में प्रतिकर (मुआवजा) दिलवाने की शक्ति प्राप्त है जानिए महत्वपूर्ण जजमेंट।
1. एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ:- उक्त मामले में ऐतिहासिक निर्णय में प्रतिकर के सिद्धांत को प्रतिपादित करते हुए न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि न्यायालय को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में अनुच्छेद 32 के अधीन प्रतिकर दिलाने की शक्ति प्राप्त है। यह प्रतिकर केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर दिया जाएगा न कि नागरिकों के सिविल अधिकार के उल्लंघन पर।
2.निलबती बेहरा बनाम उड़ीसा राज्य:- उक्त मामले में न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि जहाँ नागरिकों के मौलिक अधिकारों का राज्य सरकार द्वारा या उसके सेवकों या अधिकारी द्वारा उल्लंघन किया जाता है, वहाँ अनुच्छेद 32 एवं अनुच्छेद 226 के अंतर्गत न्यायालयों को पीड़ित व्यक्ति को प्रतिकर दिलाने की शक्ति प्राप्त है, ऐसे मामलों में सम्प्रभू की उन्मुक्ति सिद्धांत का प्रतिवाद लेकर राज्य अपने दायित्वों से बच नहीं सकता है।
उपर्युक्त जजमेंट से स्पष्ट होता है कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन होने पर व्यक्ति डारेक्ट सुप्रीम कोर्ट में वाद दायर कर सकते हैं एवं वाद व्यक्ति, सरकार या सरकार के किसी भी शासकीय अधिकारी के खिलाफ भारतीय संविधान अधिनियम, 1950 के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत किया जा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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