वाणिज्य एवं वित्तीय कारोबार वाले संस्थान (LIC, प्राइवेट बैंक, फाइनेंस कंपनी, पेमेंट बैंक आदि) अपने ग्राहकों को अक्सर उपहार दिया करते हैं परंतु यदि उपहार प्राप्त करने वाला कोई सरकारी अधिकारी अथवा कर्मचारी है, तब दिया गया उपहार, रिश्वत भी माना जा सकता है। आइए पढ़ते हैं किस कानून के तहत और किस प्रकार का उपहार रिश्वत माना जाता है। इसके लिए किस प्रकार का दंड का प्रावधान है।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 9 की परिभाषा:-
अगर कोई वाणिज्यिक संगठन का व्यक्ति किसी लोकसेवक या शासकीय अधिकारी को अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए रिश्वत देता है तब ऐसा वाणिज्यिक संगठन का व्यक्ति धारा 9 के अंतर्गत दोषी होगा।
नोट:- वाणिज्यिक संगठन के अधिकारी या उपर्युक्त व्यक्ति द्वारा वैध कार्य के लिए लोकसेवक दिया जाने वाला गिफ्ट या प्रोत्साहित पुरुस्कार रिश्वत का अपराध नहीं होगा।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 9 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान धारा 10 दिया गया हैं, एवं यह संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध है। इनकी सुनवाई का अधिकार प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को होता है। सजा- इस धारा के अंतर्गत किए गए अपराध के लिए अधिकतम सात वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनो से दण्डित किया जा सकता है।
उधानुसार:- मोहन फाइनेंस कंपनी का संचालक शासकीय अधिकारी को अनुचित प्रकार से अनुदान राशि प्राप्त करने के लिए रिश्वत देता है तब रिश्वत देने वाला संचालक धारा 9 के अंतर्गत दोषी होगा एवं धारा 10 के अंतिम अंर्तगत दण्डित किया जाएगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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