जबलपुर। मध्यप्रदेश में OBC आरक्षण विवाद के निराकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम आज भी नहीं उठ पाया। सरकार की तरफ से क्वांटिफिएबल डेटा प्रस्तुत नहीं किया गया। सुनवाई को एक बार फिर डाल दिया गया। पक्ष एवं विपक्ष में कुल 61 याचिका है दाखिल हुई है जिनकी सुनवाई हो रही है।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन- 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं हो सकता
हाईकोर्ट में 2019 में अशिता दुबे सहित अन्य की ओर से ओबीसी आरक्षण की सीमा 13 से 27 प्रतिशत किए जाने को चुनौती दी गई है। कुल 61 याचिकाओं की एक साथ सुनवाई चल रही है। अभी तक हाईकोर्ट ने 27 प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगा रखी है। मामले में याचिकाकर्ताओं की पैरवी कर रहे आदित्य संघी कोर्ट को बता चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी के प्रकरण में स्पष्ट दिशा-निर्देश है कि किसी भी स्थिति में कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।
सरकार का तर्क- आबादी ज्यादा है इसलिए आरक्षण भी ज्यादा करना पड़ेगा
मप्र में ओबीसी का 27 और EWS का 10 प्रतिशत आरक्षण मिला दें तो कुल आरक्षण 73 प्रतिशत हो जा रहा है। मप्र सरकार की ओर से OBC आरक्षण के समर्थन में मध्य प्रदेश में ओबीसी की अधिक आबादी, उनके आर्थिक, सामाजिक सहित अन्य डेटा को आधार बता रही है। सरकार ने हाईकोर्ट में पैरवी करने के लिए रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक शाह सहित अन्य अधिवक्ताओं को नियुक्त कर रखा है।
OBC आरक्षण 27% हुआ तो क्या होगा
मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने 11 मापदंडों पर आधारित क्वांटिफिएबल डेटा तैयार किया है। जो यह बताता है कि मध्यप्रदेश में पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या अधिक है और उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। सवाल यह है कि यदि इस डाटा के आधार पर पिछड़ा वर्ग को 27% आरक्षण मंजूर किया जाता है तो क्या होगा। सरकार का क्वांटिफिएबल डेटा अधूरा है। इसमें यह तो बताया है कि OBC को जनसंख्या के आधार पर आरक्षण दिया जाना चाहिए परंतु SC-ST और EWS के आरक्षण का आधार जनसंख्या को नहीं बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने 50% की लिमिट दी है। यानी यदि ओबीसी को 27% किया तो SC-ST क्या आरक्षण का प्रतिशत कम करना पड़ेगा। कितना अजीब होगा कि प्रत्येक 100 सीट में से 27 सीट जनसंख्या के आधार पर आरक्षित होंगी, 10 सीट है गरीबी के आधार पर और बाकी सारी सीटें जाति के आधार पर आरक्षित होंगी। जबलपुर की महत्वपूर्ण खबरों के लिए कृपया JABALPUR NEWS पर क्लिक करें.