ज्यादातर आपराधिक मामलों में आरोपी का कोर्ट में हाजिर होना अनिवार्य होता है। यदि वह उपस्थित नहीं होता तो उसके खिलाफ वारंट जारी हो जाता है। कभी-कभी न्यायालय आरोपी को अनिवार्य उपस्थिति से छूट दे देता है लेकिन कुछ अपराध ऐसे होते हैं जिनमें आरोपी का कोर्ट में हाजिर होना अनिवार्य नहीं होता। वह संदेश के जरिए अपना अपराध स्वीकार कर सकता है और उसे दंडित किया जा सकता है।
सीआरपीसी की धारा 206 में हमने बताया था कि ऐसे अपराध जिसका जुर्माना ₹1000 से ज्यादा ना हो या फिर जिस की सजा 3 महीने से अधिक ना हो, आरोपी को उपस्थिति से छूट मिल जाती है। समन प्राप्त होने पर आरोपी का कोर्ट में हाजिर होना अनिवार्य नहीं होता। वह डाक के माध्यम से या फिर किसी संदेशवाहक के द्वारा अपना अभिवचन भेज सकता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 253 की परिभाषा:-
• अगर कोई आरोपी समन मामले में मजिस्ट्रेट के समक्ष आए बिना किसी अभिवचन को डाक, संदेशवाहक या वकील द्वारा भेजता है तब मजिस्ट्रेट अगर आरोपी ने दोषी होने का अभिवचन दिया है तब अभिवचन के आधार पर अपना निर्णय स्वयं विवेकानुसार सुना देगा एवं आरोपी द्वारा अभिवचन के साथ जुर्माना भेज दिया गया है तो उसे स्वीकार कर लेगा।
• आरोपी अपने वकील के माध्यम से भी अभिवचन भेज सकता है तब मजिस्ट्रेट वकील द्वारा दिए गए कथनों को भी अभिलिखित कर सकता है।
साधारण शब्दों में कहें तो यह धारा उन छोटे अपराधों पर लागू होती है जो आए दिन वर्तमान में छोटी मोटी बातों को लेकर झगड़ा होते रहते हैं जैसे - शराब पीकर नशे की हालत में लोक स्थान पर उपद्रव मचाना, प्रशासनिक अधिकारी के आदेश का पालन नहीं करना आदि। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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