कहते गंगा में स्नान करने से सारे पाप उतर जाते हैं। इसका अर्थ हुआ कि लोगों के पाप गंगा में मिल जाते हैं। सवाल यह है कि हर रोज जब लाखों लोगों के पाप गंगा में मिल रहे हैं तो फिर उसे पीने के लिए शुभ और मंगलकारी क्यों माना जाता है। आइए विज्ञान से पूछते हैं:-
गंगा में स्नान करने से पाप कैसे उतरते हैं, यहां पढ़िए
सबसे पहला सवाल यह है कि गंगा नदी में स्नान करने से किसी व्यक्ति के पाप कैसे उतर सकते हैं। दरअसल, यह एक धार्मिक वाक्य है लेकिन गंगा के किनारों पर पर्यटन बढ़ाने के लिए किया गया प्रचार नहीं है। इसके पीछे भी साइंस है। वैज्ञानिक मानते हैं कि गंगा नदी में स्नान करने से मनुष्य के शरीर में मौजूद ऐसे करोड़ों बैक्टीरिया मर जाते हैं। जिन्हें खत्म करने के लिए बाजार में बहुत महंगी दवाइयों की आवश्यकता पड़ती है। यह बताने की जरूरत नहीं कि बैक्टीरिया के कारण मनुष्य की मृत्यु भी हो सकती है और यह तो सभी जानते हैं कि मनुष्य की गलतियों (पापों) के कारण ही उसके शरीर में बैक्टीरिया पनपते हैं।
गंगाजल को पीना शुभ और मंगलकारी क्यों माना जाता है
निश्चित रूप से यह सवाल बनता है कि जब गंगा नदी में लाखों लोग नहाते हैं और उनके पापकर्म ना सही, शरीर की गंदगी तो उसमें मिलती ही है। फिर उसको पीना शुभ और मंगलकारी क्यों माना जाता है। एक शब्द में इसका उत्तर है- बैक्टीरियोफेज। यह एक ऐसा दुर्लभ वायरस है जो दुनिया में मौजूद प्रत्येक बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है। गंगाजल में बैक्टीरियोफेज प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यदि कोई गंगाजल पीता है तो उसके शरीर में बैक्टीरियोफेज पहुंच जाता है और शरीर के अंदर मौजूद बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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