भोपाल। मध्यप्रदेश में B.Ed, बीपीएड, M.Ed और एमपीएड में एडमिशन शुरू हो गए हैं और इसी के साथ एडमिशन में कोटे को लेकर विवाद शुरू हो गया है। उपरोक्त कोर्स में एडमिशन के लिए 85% आरक्षण लागू कर दिया गया है। उच्च शिक्षा विभाग की इस पॉलिसी के खिलाफ मध्यप्रदेश में आक्रोश साफ नजर आ रहा है।
B.Ed, बीपीएड, M.Ed और एमपीएड एडमिशन में रिजर्वेशन का चार्ट
मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा B.Ed, बीपीएड, M.Ed और एमपीएड में एडमिशन के लिए 20% अनुसूचित जाति, 16% अनुसूचित जनजाति एवं 14% ओबीसी, इस प्रकार जातिगत आधार पर 50% आरक्षण और 10% EWS (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्र), आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण, शेख 40% सीटों में से 25% सीटें बाहरी राज्यों के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित कर दी गई है। इस प्रकार कुल 85% आरक्षण लागू कर दिया गया है। मध्य प्रदेश के सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए मात्र 15% सीटें छोड़ी गई हैं। जो अनारक्षित हैं, यानी सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित नहीं है।
कमलनाथ सरकार ने बाहरी उम्मीदवारों के लिए आरक्षण किया था
इन चार विषयों के लिए 2016 में मप्र की भाजपा सरकार ने 25 फीसदी सीटों पर ऑल इंडिया के स्टूडेंट को प्रवेश देने का नियम बनाया था। तब यह रिजर्व नहीं थी। 2019 में कांग्रेस सरकार के समय इन सीटों पर 25 फीसदी का आरक्षण तय कर दिया और राज्यपाल से अनुमोदन नहीं लिया गया। जबकि बिना इसके यह अवैध ही है। इसके बाद से कुल सीटों में से 25 फीसदी सीटों पर बाहरी राज्यों के अलावा मप्र का एक भी स्टूडेंट प्रवेश नहीं ले पा रहा है।
मध्यप्रदेश में कॉलेज वाले बाहरी छात्रों को इतना महत्व क्यों देते हैं
मप्र में बीपीएड, एमपीएड, एमएड, बीएड के कुल 653 कॉलेज हैं। इनमें बीपीएड के 20 हैं। इन सभी में मिलाकर करीब 56 हजार पर बीएड, एमएड, 2000 बीपीएड और लगभग 300 सीटें एमपीएड की हैं। अब इनमें से बाहरी राज्यों के स्टूडेंट से एडमिशन के समय ही 25 हजार रुपए और फिर बाद में लगभग दोगुनी फीस मिलती है। जबकि मप्र के स्टूडेंट से प्रवेश शुल्क 2 हजार और फीस भी आधी मिलती है। बाहरी राज्यों के स्टूडेंट को नॉन अटैंडिंग सीट यानी बिना हाजिर हुए केवल परीक्षा देने के बदले अलग से पैसा वसूला जाता है। इसी कमाई के चक्कर में 25 फीसदी सीटें बाहरी राज्यों के लिए रिजर्व कर दी गई हैं।