मोटर यान अधिनियम,1988 की धारा 132 किसी भी मोटर वाहन चालक को रोकने के लिए उपनिरीक्षक को निम्न दशाओं में जैसे कि किसी व्यक्ति, पशु, वाहनों को आपस में भिड़त होने पर या किसी भी प्रकार की नुकसानी होने पर चालक को 24 घंटे तक रोकने की शक्ति प्रदान करती है एवं अधिनियम की धारा 133 के अनुसार मोटर वाहन चालक का कर्तव्य है कि दुर्घटना होने पर वाहन मालिक की जानकारी दे। अगर वह स्वंय वाहन का स्वामी हो तो अपनी सम्पूर्ण जानकारी देगा।
धारा 134 के अनुसार वाहन चालक का कर्त्तव्य हैं कि वह किसी दुर्घटना में व्यक्ति को अगर कोई क्षति होती है तब वह वाहन छोड़कर नहीं भागेगा व्यक्ति को चिकित्सा सहायता दिलवाएगा एवं उसका पूरा सहयोग करेगा अगर कोई मोटर वाहन चालक या स्वयं चालक स्वामी होते हुए उपर्युक्त अधिनियम की धारा 132 (1) की उपधारा (क), धारा 133 एवं धारा 134 का उल्लंघन जानबूझकर कर करता है तब जानिए क्या है दण्ड का प्रावधान।
मोटर यान अधिनियम, 1988 की धारा 187 की परिभाषा:-
अगर कोई वाहन चालक या वाहन स्वामी उपर्युक्त धारा 132(1) की उपधारा (क) या धारा 133 या धारा 134 के अंतर्गत बनाए गए किसी भी नियमो का उल्लंघन करता है तब उसे प्रथम बार दोषसिद्ध होने पर छः माह की कारावास या पांच हजार रुपए जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है। अगर यही अपराध वह दुवारा करता है तब एक वर्ष की कारावास या दस हजार रुपये जुर्माना या दोनो से दण्डित किया जा सकता है।
नोट:- वाहन चलाते समय पशु को सामान्य क्षति पहुचाना भी हैं एवं व्यक्ति की संपत्ति का अर्थ है किसी भी प्रकार की संपत्ति की नुकसानी करना जैसे छोटे वाहन को क्षतिग्रस्त करना, रास्ते में बनी किसी भी प्रकार की झोपड़ी या दुकान को क्षतिग्रस्त करना आदि। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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