The Prevention of Corruption Act, 1988 section 13
घोटाला और गबन में अंतर होता है। यदि कोई अधिकारी किसी ठेकेदार को नियम विरुद्ध ठेका देता है तो इसे घोटाला कहेंगे लेकिन यदि वही अधिकारी मजदूरों को देने के लिए या सामान खरीदने के लिए निर्धारित शासकीय धन का व्यक्तिगत हित में खर्चा कर देता है, या फिर अपने अथवा किसी अन्य के बैंक खाते में ट्रांसफर कर लेता है। तब इसे गबन कहा जाएगा। यह भी कर्मचारी का भ्रष्ट आचरण है जिसके लिए उसे दंडित किया जाता है।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13 की परिभाषा
यदि किसी लोकसेवक को उसकी पदावधि के दौरान कोई शासकीय संपत्ति सौपी गई हैं जो किसी सार्वजनिक कार्य या लोकहित के विकास के लिए उपयोगी है। उस संपत्ति को लोकसेवक अपने उपयोग के लिए बेईमानी से खर्च कर लेता है या उस संपत्ति को संपरिवर्तित (परिवर्तित) कर लेता है या किसी अन्य व्यक्ति को शासकीय संपत्ति दे देता है तब ऐसा लोकसेवक अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत दोषी होगा।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 की धारा 13 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान
यह अपराध संज्ञेय एवं अजमानतीय होंगे। इनकी सुनवाई विचारण का अधिकार राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किसी विशेष न्यायाधीश के द्वारा किया जाएगा। सजा- इस अपराध के लिए अधिकतम दस वर्षों की कारावास और जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।
उधानुसार:- ग्राम पंचायत में ग्राम विकास एवं मनरेगा के अंतर्गत मिले पैसों को सरपंच, सचिव बेईमानी एवं कपटपूर्ण तरीके से गबन कर लेते हैं तब दोनों अधिनियम की धारा 13 के अनुसार दोषी होंगे। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665