किसी परिवाद से भिन्न अगर कोई मामला जो समन अपराध से संबंधित है उसकी सुनवाई कोई भी न्यायिक मजिस्ट्रेट कर रहा है एवं सुनवाई में देरी होती है या अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समझ से परे है तब ऐसे मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट हस्तक्षेप कर मामले के विचारण को रुकवाने की शक्ति रखता है जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 258 की परिभाषा:-
अगर कोई परिवाद से अलग समन मामले का विचारण किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा रहा है तब मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट की आज्ञा (आदेश) या मंजूरी से मामले की कार्यवाही को बिना सुनवाई के रोक देगा, अगर विचारण को साक्षियो के साक्ष्य को अभिलिखित किये जाने के के बाद रोका गया है तब मजिस्ट्रेट दोषमुक्त का निर्णय भी सुना सकता है या अन्य दशा में आरोपी को प्रतिभूति के साथ आरोपी को जमानत पर छोड़ सकता है।
विशेष नोट:- इस धारा का प्रयोग ज्यादातर ऐसे समन मामलों में किया जा सकता है जो छोटे मोटे अपराधों के अंतर्गत आते हैं जिसके लिए आरोपी को दण्डित करना समाज के लिए सही नहीं है जैसे कि भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 95 के अंतर्गत बताया गया है तुच्छ (छोटी मोटी) अपहानि के अपराधों को क्षमा योग्य माना गया है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)