बचपन में अगर किसी बच्चों के दिमाग में डर बिठा दे तो वह डर उस बालक के दिमाग में हमेशा के लिए बना रहता है और इसका परिणाम यह होता है की वह बालक बड़े होकर भी उस डर को दिमाग से निकाल नहीं पता है। इसीलिए किशोर अधिनियम में ऐसे व्यक्ति को दण्डित करने का प्रावधान है जो किशोर बालक की किसी भी प्रकार का शारीरिक दण्ड देते हैं जानिए।
किशोर न्याय (बालको की देख रेख एवं सरंक्षण) अधिनियम,2015 की धारा 82 की परिभाषा
1. कोई संस्था (जिसके अंतर्गत, कोचिंग, स्कूल, कॉलेज, आवासीय विद्यालय, होस्टल आदि ) का भारसाधक व्यक्ति या कोई बालक से करवाने वाला ठेकेदार किशोर बालक को जानबूझकर कर अनुशासन हीनता के लिए किसी भी प्रकार का शारिरीक दण्ड देगा तब ऐसे व्यक्ति पर दस हजार रुपए जुर्माना एवं दोबारा यही अपराध करेगा तब तीन माह की कारावास या जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
2. अगर कोई संस्था भारसाधक व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी होता है तब उस व्यक्ति को सेवा से पदच्युत के दण्ड से दिया जाएगा अर्थात उसे नोकरी से हटाने का दंड दिया जाएगा।
कार्रवाई न करने वाले अधिकारी को 7 साल की जेल होगी
विशेष नोट:- धारा 82 की उपधारा (3) बहुत महत्वपूर्ण है यह धारा यह नियम बनाती है जब किसी व्यक्ति को धारा 82 के उपर्युक्त उपधारा(1) के दोषसिद्धि कर दिया गया है एवं किसी समिति, बोर्ड, सरकार या न्यायालय के आदेश का संस्था प्रबंधक जानबूझकर कर अनुपालन करता है या ऐसे व्यक्ति को दंडित नहीं करता है जिसने बालक को शारीरिक दण्ड दिया था तब संस्था के भारसाधक अधिकारी को तीन वर्ष से अधिक कारावास जो सात वर्ष तक की भी हो सकती है से और जुर्माना एक लाख रुपए से दण्डित करती है।
"यह धारा किसी भी प्रकार से बच्चों को शारीरिक दण्ड देने वाले को क्षमा नहीं करती है।' Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665