सभी प्रकार के न्यायालय चाहे वह सिविल न्यायालय हो या जिला सत्र न्यायालय सभी को अपनी अधिकारिता में सुनवाई करने का अधिकार है। किस अन्य अधिकारिता क्षेत्र के मामले में कोई न्यायालय या न्यायाधीश तब तक सुनवाई नहीं कर सकता जब तक उस राज्य का उच्च न्यायालय उसे ससक्त (नियुक्त) नहीं करेगा किसी सुनवाई के लिए।
सामान्य शब्दों में अगर बात करे तो एक द्वितीय श्रेणी का मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के मामले की सुनवाई नहीं कर सकता है या कोई सेशन कोर्ट अन्य जिले के सेशन कोर्ट के मामले की सुनवाई करने की अधिकारिता नहीं रखते हैं। अगर कोई कोर्ट या मजिस्ट्रेट ऐसी सुनवाई प्रारंभ कर देता है तब ऐसी सुनवाई या विचारण को रोकने के लिए उच्च न्यायालय में किस प्रकार की रिट याचिका लगाई जा सकती है जानिए।
भारतीय संविधान अधिनियम,1950 के अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालय की रिट याचिका 'प्रतिषेध, की परिभाषा
जब कोई अधीनस्थ न्यायालय ऐसे मामले की सुनवाई प्रारंभ कर देता है जिस पर उसे सुनवाई करने की कोई अधिकारिता नहीं है या कोई न्यायालय अपनी अधिकारिता से बाहर कार्य कर रहा है तब ऐसी कार्यवाही की रोकने के लिए उच्च न्यायालय में प्रतिषेध रिट याचिका लगाई जा सकती है अर्थात कह सकते हैं कि प्रतिषेध रिट याचिका से ऐसी सुनवाई, विचारण या न्यायालय की अधिकारिता से बाहर की कार्यवाही को रोका जा सकता है।
लेखक बीआर अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665