नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट द्वारा तकनीकी शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश के लगभग 300 पॉलीटेक्निक अतिथि व्याख्याताओं (Guest Lecturer) की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति हिमा कोहली बाली युगल पीठ ने एक बड़ा ही सख्त निर्णय दिया गया है।
इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश तकनीकी शिक्षा अतिथि विद्वानों को स्थायित्व और अंतरिम राहत प्रदान करते हुए, 1000 रू प्रति लेक्चर देने का फैसला सुनाया है। कहा इतने समय बाद भी तकनीकी शिक्षा विभाग की ओर से पॉलीटेक्निक अतिथि व्याख्याताओं (Guest faculty) के लिए अनिश्चितता बनी हुई है। इस प्रकार अतिथि व्याख्याताओं का शोषण किया जा रहा है। पूर्व भी सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कर दिया है कि अतिथि विद्वान (गेस्ट फैकल्टी) का पद अन्य अतिथि विद्वान (गेस्ट फैकल्टी) से नहीं भरा जा सकेगा।
पॉलीटेक्निक अतिथि व्याख्याता (विद्वान) (Guest lecturer) याचिकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता वरुण ठाकुर ने पक्ष रखते हुए कहा कि याचिकाकर्ता पूर्व में निर्धारित नियम के तहत पॉलीटेक्निक कॉलेज में अतिथि व्याख्याता के पद पर नियुक्त किए गए थे। वह ईमानदारी से अपने कार्य कर रहे है। दशकों से कार्यरत अतिथि व्याख्याताओं की स्थिति काफी दयनीय है। उन्हें लगभग 2 दशक से कालखंड व्यवस्था के अन्तर्गत रखते हुए डिपार्टमेंट ऑफ टेक्निकल एजुकेशन मध्यप्रदेश द्वारा मजदूरी रूपी मानदेय प्रदान किया जाता रहा है, जबकि संस्था स्तर पर सुबह 10 बजे से 05 बजे तक रोककर समस्त कार्य (पठन पाठन, मूल्यांकन, दस्तावेज सत्यापन, प्रायोगिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा, शासकीय परीक्षाओं में वीक्षक, कार्यालयीन कार्य, प्रवेश प्रक्रिया जैसे) इत्यादि कार्य नियमित कर्मचारियों की भांति करवाये जाते हैं।
मध्यप्रदेश कैबिनेट की बैठक में 18 जनवरी 2022 को तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग द्वारा कालखंड व्यवस्था को समाप्त कर 11 माह के लिए आगामी सत्र 2022-23 से फिक्स मानदेय अधिकतम 30000 रुपये प्रतिमाह प्रदान किए जाने का फैसला किया जा चुका है परंतु डिपार्टमेंट ऑफ टेक्निकल एजुकेशन, एमपी के अधिकारी इसके विपरीत अभी भी कालखंड व्यवस्था को समाप्त करने के पक्ष में नहीं हैं।
बावजूद इसके 27 जनवरी 2022 को तकनीकी शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश के उलट पूर्व से कार्यरत को 400 और नई व्यवस्था से से पॉलीटेक्निक अतिथि व्याख्याताओं को 30000 रुपए अधिकतम दिए जाने का आदेश जारी किया। पूर्व से कार्यरत अतिथि व्याख्याताओं को एकमुश्त वेतनमान न दिया जाना शोषणकारी व्यवस्था को इंगित करता है।