भोपाल। आज प्रदेश में चुनावी बिसात बिछ चुकी है, अपने-अपने शतरंज के प्यादे नेता बिछाने में लग गए हैं। घोषणाएं जमकर की जा रही हैं लेकिन आज वर्तमान राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा का विषय बना हुआ है की एक बड़ा वर्ग अस्थाई कर्मचारियों का है अब ये कर्मचारियों का बड़ा वर्ग किस तरफ़ पलटी लेता है देखने की बात है।
इस वर्ग में लगभग 12 से 15 लाख कर्मचारी हैं जो पिछले दो दशकों से सरकार से अपने नियनितिकरण की आवाज़ लगातार उठा रहे हैं। महाविद्यालय में रिक्त पदों के विरुद्ध सेवा देने वाले अतिथि विद्वान, संविदा कर्मचारी, आउटसोर्स कर्मचारी, बिजली विभाग मीटर वाचक, दैनिक वेतन भोगी, कलेक्टर रेट, अतिथि शिक्षक, अंशकालिक शिक्षक आदि सभी विभागों में इनकी संख्या अच्छी खासी है, जो हर चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते आए हैं।
सरकार नेता पार्टियां तो चुनाव से पहले घोषणा पत्र वचन पत्र संकल्प पत्र में इनकी मांग को प्रमुखता से रखते हैं और सरकार में आते ही नज़र अंदाज करते हैं। अतिथि विद्वानों का लंबा आंदोलन राजधानी में 144 दिन चला, ख़ुद सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान सहित भाजपा के कई नेता आंदोलन में आए जो नियमितीकरण भविष्य सुरक्षित करने का वादा दावा कर आए लेकिन आज तक उस तरफ कदम नहीं उठाए। आज ये चर्चा का विषय बना हुआ है। अब देखना है की इन अस्थाई कर्मचारियों की तरफ़ 2023 का सेमीफाइनल कहा जाने वाला इस चुनाव में ये बड़ा वर्ग किधर समर्थन करता है ये देखने वाली बात है।
पिछले 26 वर्षों से रिक्त पदों के विरुद्ध अतिथि विद्वान लगातार सेवा देते आ रहे हैं, परीक्षा, प्रवेश, प्रबंधन, अध्यापन, मूल्यांकन,चुनाव कार्य आदि सभी करते हैं। लेकिन सरकारें आज तक अतिथि विद्वानों के नाम से अतिथि नही हटा पाई जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार से आग्रह है की एक व्यवस्थित नीति बनाकर अतिथि विद्वानों का भविष्य सुरक्षित करे। मुख्यमंत्री जी वादा पूरा करें।
डॉ आशीष पांडेय, मीडिया प्रभारी अतिथि विद्वान महासंघ
आज अतिथि विद्वानों की हालत किसी से छुपी नहीं है, सरकार इस तरफ़ निरंकुश बनी हुई है।महिला अतिथि विद्वानों को लगातार परेशान किया जा रहा है।महंगाई इतनी है फिर भी वेतन नहीं बढ़ा है।सरकार अतिथि विद्वानों के तरफ़ ध्यान दे।
डॉ देवराज सिंह, अध्यक्ष, अतिथि विद्वान महासंघ