इंदौर। 88 साल के इतिहास में पहली बार मध्य प्रदेश को रणजी ट्रॉफी मिली है। मध्य प्रदेश की टीम पहली बार रणजी टूर्नामेंट जीती है। मध्यप्रदेश की इस जीत में इंदौर के 4 खिलाड़ियों का महत्वपूर्ण योगदान है। आइए इन चारों खिलाड़ियों की कहानी पढ़ते हैं:-
पार्थ साहनी ने पिता काे देख सीखा बल्ला पकड़ना
मध्य प्रदेश टीम में शामिल युवा आलराउंडर पार्थ साहनी ने अपने पिता और पूर्व क्रिकेटर मुकेश साहनी काे देखकर बल्ला पकड़ना सीखा। पार्थ अपने पिता मुकेश के साथ ही इंदाैर के सीसीआइ क्लब जाते थे। मुकेश ने 44 रणजी मैच खेले हैं। वे मप्र रणजी टीम के पांच साल काेच रहे हैं जबकि देवधर ट्राफी और दुलीप ट्राफी में भी काेच रहे हैं। इनके मार्गदर्शन में मध्य क्षेत्र टीम दुलीप ट्राफी में उपविजेता रही है। बायें हाथ के आक्रामक बल्लेबाज व बायें हाथ के सि्पन गेंदबाज पार्थ क्रिकेट के छाेटे प्रारूपाें वनडे व टी–20 में मध्य प्रदेश के कप्तान हैं, जबकि रणजी में उन्हें फाइनल में जाकर पदार्पण का माैका मिला। पिता मुकेश ने बताया कि पार्थ करीब सात साल से रणजी टीम में चयनित हाे रहा था, लेकिन माैका नहीं मिलने के बावजूद वह कभी हताश नहीं हुआ। नेट्स पर अपनी खामियाें काे दूर करता रहा, जिसका उसे फायदा मिला। यह खुशी की बात है कि मध्य प्रदेश टीम चैंपियन बनी है। उल्लेखनीय है कि पार्थ क्लब क्रिकेट इंदाैर के सीसीआइ से खेलते हैं जबकि संभागीय मैचाें में उज्जैन टीम का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्हाेंने हाल ही में अपनी कप्तानी में उज्जैन संभाग काे चैंपियन भी बनाया है।
शुभम शर्मा काे क्रिकेटर बनाने के लिए काेच ने माता–पिता काे मुश्किल से मनाया
इंदाैर के शुभम शर्मा का बड़ा भाई क्रिकेट खेलता था। वह भाई के साथ साइकिल पर नेट्स पर आता था। क्रिकेट में रुझान काे देखकर काेच ऋषि येंगडे ने पूछा कि क्लब क्रिकेट खेलाेगे। शुभम ने कहा– मम्मी–पापा से पूछना पड़ेगा। काेच ने माता–पिता से चर्चा की, लेकिन माता–पिता की चिंता थी कि उसकी पढ़ाई प्रभावित न हाे। तब शुभम वाद–विवाद स्पर्धाओं में हिस्सा लिया करता था। माता–पिता ने काेच से कहा कि लिखकर दाे यह टीम में आएगा। मगर समझाने के बाद वह मान गए। तब एमपीसीए की नई अकादमी शुरू हुई थी, लेकिन क्लब से शुभम का नाम नहीं जा सका था। येंगडे ने अकादमी के मुख्य काेच पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर अमय खुरासिया से चर्चा कर उन्हें बताया कि यह प्रतिभाशाली खिलाड़ी है। तकनीकी कारणाें से नाम नहीं आ सका है। अमय ने स्कूल की ओर से नाम भेजने काे कहा। इसके बाद उन्हाेंने शुभम का चयन किया और उसकी तकनीक पर मेहनत की। इसके बाद शुभम ने पलटकर नहीं देखा। ऋषि बताते हैं कि अब जब भी शुभम की मम्मी मिलती हैं ताे वह दिन याद करती हैं जब वे शुभम काे क्रिकेट में भेजने काे तैयार नहीं थी। इंदाैर स्पाेट्र्स क्लब के पदाधिकारी राजूसिंह चाैहान ने बचपन में शुभम काे आगे बढ़ाने में बहुत याेगदान दिया।
पिता ही बने सारांश जैन के पहले गुरु
सारांश के पिता सुबाेध जैन रणजी क्रिकेटर रहे हैं। वे आफ सि्पन गेंदबाज थे। उन्हीं काे देखकर सारांश की क्रिकेट में रुचि बढ़ी। पिता की तरह सारांश भी इंदाैर के विजय क्लब से खेलने लगे और यहां पिता सुबाेध ही पहले काेच बने। साथ ही काेच राम अत्रे का मार्गदर्शन भी मिला। सारांश ने वर्ष 2014 में रणजी पदार्पण किया था। इसी साल उनके पिता काे कैंसर हुआ। बताैर खिलाड़ी सारांश के लिए मुशि्कल वक्त था, लेकिन उन्हाेंने एकाग्रता भंग नहीं हाेने दी। आपरेशन के बाद पिता की सेहत अब ठीक है। सुबाेध जैन बताते हैं, सारांश कड़ी मेहनत करता है। वह इंदाैर संभाग क्रिकेट टीम का कप्तान है और अपने प्रदर्शन के सहारे टीम काे चैंपियन बनवा चुका है। खिलाड़ियाें के जीवन में उतार–चढ़ाव आते हैं, लेकिन अब तक सारांश के करियर में खराब दाैर नहीं आया है। क्रिकेट के कारण पढ़ाई जरूर प्रभावित हुई है। सारांश ने 12वीं तक की पढ़ाई की है। इसके बाद क्रिकेट मैचाें के कारण वह परीक्षा नहीं दे पाता था। इसलिए आगे की पढ़ाई नहीं कर सका। पिता सुबाेध जैन चाहते हैं कि वह बताैर क्रिकेटर उनका सपना पूरा करे। वे उसे भारतीय टीम में खेलते देखना चाहते हैं। इस सत्र से सारांश इंदाैर की गाैड़ एकेडमी से खेलने लगे हैं।
आठ साल की उम्र में रजत पाटीदार ने शुरू किया था क्रिकेट खेलना
इंदाैर के रजत पाटीदार ने विजय क्लब से करियर शुरू किया था। जब रजत करीब आठ साल के थे, ताे उनके दादा उन्हें क्लब लेकर आए थे। यहां पूर्व क्रिकेटर सचिन धाेलपुरे ने उन्हें बल्लेबाजी के गुर सिखाए। रजत के अनुसार जब मैं 19 साल का हुआ ताे असली प्रतिस्पर्धा से सामना हुआ। इस दाैरान पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर अमय खुरासिया ने मेरी तकनीक सुधारी। यही तकनीक मेरी मजबूती बनी हुई है। रणजी टीम में काेच चंद्रकांत पंडित ने बताया कि बड़े खिलाड़ी किस तरह मैचाें की तैयारी करते हैं। रजत का परिवार क्रिकेट से जुड़ा नहीं है, लेकिन माता–पिता उनका हर मैच देखते हैं। पाटीदार परिवार मूलत: देवास जिले का रहने वाला है, लेकिन काराेबार के चलते पिता इंदाैर आकर बस गए। रजत अपनी शादी की तैयारियां छाेड़कर आइपीएल खेलने गए थे। जहां उन्हाेंने इलिमिनेटर में शतक जमाते हुए अपनी उपयाेगिता साबित की थी। वे पहले अनकैप्ड खिलाड़ी बने थे, जिसने इलिमिनेटर में शतक बनाया हाे। रणजी फाइनल में भी रजत ने शतकीय पारी खेलकर मध्य प्रदेश टीम काे मजबूती दी थी।