जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने वनविभाग के एक रेंजर के उस आदेश को निरस्त कर दिया है जिसके माध्यम ने उसने आदिवासियों पर तेंदुपत्ता तोड़ने और बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया था। आदिवासी स्वयं फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट आए थे। इस मामले में रेंजर के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई भी हो सकती है।
प्रशासनिक न्यायाधीश शील नागू की एकलपीठ ने राज्य सरकार व अन्य को इस मामले में नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया है। कुंडम तहसील की महा ग्रामसभा रोरिया के अध्यक्ष लालसिंह टेकाम की ओर से याचिका दायर की गई। अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि केंद्र सरकार के 2006 के अधिनियम के तहत आदिवासी समुदाय के लोगों को जंगल से तेंदूपत्ता तोड़ने व बेचने का अधिकार दिया गया है। लेकिन कुंडम वन परिक्षेत्र अधिकारी ने 11 मई, 2021 को एक आदेश जारी कर इस अधिकार को प्रतिबंधित कर दिया।
आदेश में कहा गया कि अब तेंदूपत्ता तोड़ने व विक्रय का अधिकार सरकारी एजेंसियों को ही है। अधिवक्ता ने तर्क दिया कि राज्य सरकार के जिस अधिनियम के तहत यह रोक लगाई गई, वह 1964 का है। जबकि केंद्र सरकार ने 2006 के अधिनियम में इसकी अनुमति दी है। तेंदूपत्ता तोड़ना, संग्रहण व विक्रय सदियों से आदिवासियों की आजीविका का प्रमुख साधन है। इस पर रोक लगाना अनुचित है। यह रोक हटाई जाए।