प्राइवेट यूनिवर्सिटी vs राज्य सूचना आयोग- हाईकोर्ट द्वारा आदेश स्थगित, जवाब तलब

Bhopal Samachar
जबलपुर
। मध्य प्रदेश के राज्य सूचना आयोग की प्रतिष्ठा का प्रश्न उपस्थित हो गया है। हाईकोर्ट ने आयोग के उस आदेश को स्थगित कर दिया है जिसमें प्राइवेट यूनिवर्सिटी को RTI के अंतर्गत घोषित किया गया था एवं सूचना अधिकारी और जानकारी देने के लिए आदेशित किया गया था। हाईकोर्ट ने उन आरटीआई कार्यकर्ताओं को बुलाया है जिन्होंने निजी विश्वविद्यालयों के खिलाफ राज्य सूचना आयोग में आवेदन दाखिल किया था।

मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय में प्राइवेट यूनिवर्सिटी संचालकों की तरफ से एडवोकेट सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता और आशीष मिश्रा ने पैरवी की। राज्य सूचना आयोग की ओर से अधिवक्ता जय शुक्ला ने पैरवी की। सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 2 के अंतर्गत हर 'पब्लिक अथॉरिटी' को लोक सूचना अधिकारी अपने यहां नियुक्त करना होता है, जो सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत प्राप्त होने वाले सभी आवेदनों का परीक्षण करता है और मांगी गई सूचना उपलब्ध कराता है। 

मध्य प्रदेश के निजी विश्वविद्यालयों द्वारा लोक सूचना अधिकारी नियुक्त नहीं किया गया क्योंकि उनके अनुसार अधिनियम में प्राइवेट यूनिवर्सिटी को पब्लिक अथॉरिटी नहीं माना गया है। इस प्रकार प्राइवेट यूनिवर्सिटी सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त होने वाले किसी भी आवेदन का जवाब देने अथवा जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं है।

कुछ आईटीआई एक्टिविस्ट द्वारा इस सिस्टम के खिलाफ राज्य सूचना आयोग में आवेदन प्रस्तुत किया गया था। फरवरी 2022 में राज्य सूचना आयोग द्वारा सभी प्राइवेट यूनिवर्सिटी संचालकों को आदेशित किया गया कि वह विश्वविद्यालय में लोक सूचना अधिकारी की नियुक्ति करें। 

उसके बाद 8 जून 2022 को आदेश दिया गया कि जिन व्यक्तियों ने सूचना के अधिकार अधिनियम में आवेदन दाखिल किये है, उनको स्वीकार करते हुए चाही गई जानकारी आवेदक एवं पक्षकार व्यक्ति को उपलब्ध कराई जाए।

राज्य सूचना आयोग के आदेशों के विरुद्ध उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल की गई। जिसमें निजी विश्वविद्यालयों द्वारा कहा गया कि आयोग का आदेश असंवैधानिक एवं अनुचित है, साथ ही सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की परिधि के बाहर आता है। निजी विश्वविद्यालयों की तरफ से अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने तर्क दिया की धारा 2 (एच) में पब्लिक अथॉरिटी घोषित होने के लिए यह आवश्यक है कि वह किसी भी तरह से राज्य अथवा केंद्र शासन से सहायता, अनुदान या शासकीय लाभ प्राप्त कर रहे हो। 

चूँकि निजी विश्वविद्यालयों द्वारा ऐसा किसी भी तरह का लाभ, अनुदान अथवा शासकीय कोष से सहायता नहीं ली जाती है, ऐसी परिस्थिति में उनको अधिनियम के अंतर्गत 'पब्लिक अथॉरिटी' नहीं माना जा सकता। याचिका के जरिए आदेश को निरस्त करने की मांग की गई। 

जबलपुर हाईकोर्ट द्वारा याचिकाकर्ता निजी विश्वविद्यालय द्वारा दाखिल याचिका में अंतरिम राहत प्रदान की गई है। कोर्ट ने कहा है कि याचिकाकर्ता निजी विश्वविद्यालय को किसी भी तरह की सूचना उपलब्ध कराने हेतु बाध्य न किया जाए। राज्य सूचना आयोग और अन्य कई आरटीआई कार्यकर्ता आवेदकगण जिनके द्वारा आवेदन दाखिल किया गया था, उनको भी कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। सभी से अगस्त 2022 के तीसरे सप्ताह तक जवाब माँगा है।

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