परक्राम्य लिखत अधिनियम,1881 की धारा 138 के अनुसार अगर कोई व्यक्ति ऐसे बैंक खाते का चेक देता है, जिसमें भुगतान के लिए पर्याप्त राशि नहीं है और इसके कारण धनादेश अनादरित हो जाता है।
तब ऐसे खाता धारक को दो वर्ष का कारावास या चेक की राशि के दुगना जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है लेकिन क्या परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के अलावा कम रकम या शून्य राशि वाला चेक देने वाले व्यक्ति पर भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 420 (छल) का आपराधिक मामला भी बन सकता है। क्या ऐसे व्यक्ति को आईपीसी की धारा 420 के तहत दंडित किया जा सकता है। पढ़िए केरल हाई कोर्ट का एक महत्वपूर्ण जजमेंट:-
चेक बाउंस महत्वपूर्ण जजमेंट- वीवीएलएन चेरी बनाम एनए मार्टिन
उक्त मामले में केरल उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि किसी बैंक का चेक बाउंस होने मात्र के आधार पर भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 420 (छल) का अपराध नहीं होता जब तक यह साबित न कर दिया जाए कि चेक जारी करने वाले व्यक्ति को यह ज्ञात था कि उसके खाते में चेक पर अंकित मूल्य की धनराशि उपलब्ध नहीं है।
साधारण शब्दों में कहें तो चेक देने वाले व्यक्ति ने जानबूझकर कर ऐसे बैंक खाते का चेक दिया है जिस खाते में वह राशि नहीं रखता है एवं परिवादी को यह साबित करना है कि उसका खाता पहले से ही शून्य रहा है तब ही भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 420 लागू होगी अन्यथा परक्राम्य लिखत अधिनियम,1881 की धारा 138 लागू रहेगी। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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