शिवलिंग का शुद्ध जल, दूध, दही, घी एवं शहद इत्यादि से नियमित रूप से अभिषेक किया जाता है। उसके बाद भी पृथ्वी पर प्रकट हुए सभी ज्योतिर्लिंग एवं स्वयंभू शिवलिंग का पत्थर काला होता है। सवाल यह है कि पृथ्वी के उत्तर से दक्षिण तक मौजूद सभी प्रकार की शिवलिंग का पत्थर काला क्यों होता है। यह कोई इत्तेफाक है या फिर इसके पीछे कोई बड़ा विज्ञान है, आइए आज यह रहस्य जानते हैं:-
यदि आप भोपाल समाचार के नियमित पाठक है तो आप जानते ही हैं कि पृथ्वी पर मौजूद सभी ज्योतिर्लिंग एक न्यूक्लियर रिएक्टर की तरह होते हैं और इनमें रेडियोएक्टिव एनर्जी पाई जाती है। यही कारण है कि शिवलिंग का नियमित रूप से विभिन्न सामग्री से अभिषेक किया जाता है। जिसके कारण न्यूक्लियर रिएक्टर का खतरा (तीसरी आंख खुलने का खतरा) टल जाता है।
शिवलिंग के पत्थर का रंग काला होने के पीछे भी यही कारण है। रेडियोएक्टिव एनर्जी के कारण सभी ज्योतिर्लिंग एवं स्वयंभू शिवलिंग अपने आसपास के वातावरण में मौजूद नेगेटिव एनर्जी को अवशोषित करते हैं। इसे आप सरल हिंदी में ऐसे भी कह सकते हैं कि वातावरण में मौजूद सारा जहर सोख लेते हैं। इसके कारण पत्थर का रंग काला और गहरा काला होता चला जाता है।
शिवलिंग में रेडियो एक्टिव एनर्जी के कारण ही जब कोई भक्त शिवलिंग को अपने हाथों से स्पर्श करता है तो उसकी सारी नेगेटिव एनर्जी नष्ट हो जाती है और वह सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। कुछ लोग इस वैज्ञानिक प्रक्रिया को चमत्कार भी कहते हैं।