पढ़िए ऐसे क्रिमिनल केस जिनमें ना गवाही न वकीलों की बहस, डायरेक्ट डिसीजन दिया जाता है- CrPC 1973

Bhopal Samachar
भारत में बहुत सारे लोग इस बात से नाराज होते हैं कि भारत की न्याय व्यवस्था काफी धीमी गति से चलती है। पुलिस में प्रकरण दर्ज होने से लेकर फैसला होने तक वर्षों लग जाते हैं लेकिन आज हम आपको बताते हैं कि इसके विपरीत कुछ मामले ऐसे होते हैं जिनमें ना तो गवाही होती है और ना ही वकीलों की बहस। डायरेक्ट डिसीजन सुनाया जाता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 261 के तहत इस तरह के मामलों की सुनवाई होती है। द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट हाईकोर्ट के आदेश पर निर्णय सुनाते हैं। इस श्रेणी में ज्यादातर ऐसे मामले आते हैं जो दुष्प्रेरण से संबंधित होते हैं। यानी आरोपी द्वारा अपराध नहीं किया जाता बल्कि किसी दूसरे व्यक्ति को अपराध के लिए उकसाया जाता है। इस तरह के मामलों में 6 महीने से ज्यादा सजा का प्रावधान नहीं होता। 

यदि आरोपी अपराध स्वीकार कर लेता है और क्षमा मांगता है तो न्यायालय कई बार न्यूनतम दंड देकर मामले का निपटारा कर देता है लेकिन यदि आरोपी, न्यायालय में अपराध स्वीकार करने से इंकार कर देता है। अपने आप को निर्दोष घोषित करता है तब ऐसी स्थिति में न्यायधीश महोदय केस डायरी में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर फैसला सुना देते हैं। यानी कि दूसरे मामलों की तरह गवाही और वकीलों की बहस की लंबी प्रक्रिया नहीं चलती। अधिकतम 3 महीने में फैसला सुना दिया जाता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!