कोई भी मामला जब जांच की प्रक्रिया पूरी होने के बाद न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है तो उसमें अपराधी को दंडित किए जाने हेतु निवेदन किया जाता है। कई बार दोनों पक्षों के बीच समझौता हो जाता है। ऐसी स्थिति में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 265(घ) के अनुसार न्यायालय का पीठासीन अधिकारी समझौते की रिपोर्ट न्यायालय को प्रस्तुत करेगा। जानिए रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद न्यायालय उस मामले में क्या कर सकता है। क्या समझौते के कारण अपराधी की सजा माफ हो जाती है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 265 (ङ) की परिभाषा:-
दोनो पक्षकारों की सौदेबाजी प्रक्रिया होने के बाद न्यायालय अपना अतिम निर्णय इस प्रकार देगा:-
1. न्यायालय पीड़ित व्यक्ति को प्रतिकर अधिनिर्णीत करेगा एवं दण्ड तौर पर आरोपी को अच्छे आचरण की चेतावनी देकर छोड़ देगा या कोई अपराध परिवीक्षा अधिनियम,1958 के अंतर्गत है तब उसे परख के आधार पर छोड़ दिया जाएगा।
2. अगर कोई अपराध ऐसा है जिसे कानून में लिखा की कम से कम अपराधी को 6 माह की कारावास देना आवश्यक है तब न्यायालय सौदेबाजी के आरोपी को 3 माह की कारावास पूरी करने का आदेश देगा अर्थात न्यूनतम सजा के आधे कारावास से दण्डित करेगा।
3. अगर किसी आरोपी का अपराध परिवीक्षा अधिनियम या न्यूनतम सजा के अंतर्गत नहीं है तब न्यायालय आरोपी को जो अधिकतम सजा होगी उसकी एक चौथाई सजा से दण्डित करेगा आर्थात अगर अपराध की सजा अधिकतम 5 वर्ष है तब न्यायालय सौदेबाजी के आरोपी को एक वर्ष पच्चीस दिन की सजा पूर्ण करने का आदेश देगा।
साधारण शब्दों में अगर कहे तो अगर कोई आरोपी, पीड़ित व्यक्ति से समझौता कर भी लेता है तब उसे न्यायालय के दण्ड से माफ नहीं किया जाएगा पर न्यायालय उसे सिर्फ किसी अधिनियम के अंतर्गत छूट प्रदान कर सकता है।
महत्वपूर्ण तथ्य:-
• इस धारा का निर्णय न्यायालय खुली अदालत में देगा।
• न्यायालय द्वारा दिया गया यह निर्णय अंतिम निर्णय होगा इस निर्णय की अन्य न्यायालय में अपील नहीं की जाती है लेकिन हाईकोर्ट में 136 के अंतर्गत अपील की जा सकती है एवं 226 के अंतर्गत रिट लगाई जा सकती है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)