दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 267 के अनुसार मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को आपराधिक मामलों में यह आदेश देने की शक्ति प्राप्त है कि जेल में बंद कोई भी व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष पेश होकर साक्षी के तौर पर गवाही दे या पेशी के लिए हाजिर हो। लेकिन राज्य सरकार धारा 268 के अनुसार न्यायालय के इस आदेश को परास्त कर सकती है जानिए किन परिस्थितियों में।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 268 की परिभाषा:-
जब कोई मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी कारागार (जेल) में बंद व्यक्ति को पेशी के लिए न्यायालय के समक्ष हाजिर होने का आदेश देता है तब राज्य सरकार निम्न परिस्थितियों में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश पर रोक लगा सकती है:-
1. अगर कोई ऐसा व्यक्ति जेल में बंद है जिसने कोई जघन्य अपराध किया है और वह बाहर आये तो भीड़ उस पर आक्रमण कर सकती है।
2. ऐसा व्यक्ति जेल में बंद हो जिसके बाहर आने से लोक शांति में बाधा उत्पन्न होगी तब।
3. राज्य सरकार को ऐसा प्रतीत होगा कि अगर जेल में बंद व्यक्ति न्यायालय तक पहुंचने से पहले ही अगवा कर लिया जाएगा तब।
अर्थात सामान्य शब्दों में कहे तो राज्य सरकार ऐसे जेल में बंद व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष पेश होने पर रोक लगा सकती है जिसके कारण लोकशान्ति, लोक-व्यवस्था भंग होने की संभावना हो, राज्य सरकार के आदेश के बाद न्यायालय का आदेश प्रभाव-हीन हो जाएगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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